वृहन्नवणम(संध्या मन्त्र )
ओं विष्णु विष्णु तू भनरे प्राणी, साढ़े भक्ति उधरणो |
दीवला सों दानों दास विदानों, मदसुदसनों महमानों || चेतो चित्त जानी, षाड़र्ग पाणी नादे वेदे निरंजनो | आदि विष्णु वराह दाढा, कर धर उधरणो || लक्ष्मीनारायण निशचल थानो, थिर रहणो, मोहन आप निरंजन स्वामी |भण गोपालो त्रिभुवन तारों, भणता गुणन्ता पाप क्षयों | स्वर्ग मोक्ष जेहि तूटा लाभै, अबचल राजों खापर खानो क्षय करणो | चीत दीठा मिरग तिरासो, बाघा रोले गउ विणासे || तिरपूले गुण-बान ह्यो तप्त बुफे धार जल बुठा | विष्णु भणन्ता पाप खयों, ज्यों भूख को पालन अन्न अहारों || विष को पालण गरुड़ दवारों, के के पंखेरू सीचाण तिरासे | यों विष्णु भणन्ता पाप बिणासे, विष्णु ही मान विष्णु भणियो || विष्णु ही मन विष्णु ही मन विष्णु रहियों, तेतिस कोटि बैकुंठ पहुन्ता | साचे सतगुर का मंत्र कहीय || |