अथ पाहल मन्त्र:
ओ३म् नमो स्वामी शुभ करतार निर्तार भवतार, धर्मधार, पूर्व एक ओंकार ||1||
सधूना दर्शनम्पुन्यम, सन्मुखे पापनाशनम |2||
जन्म फिरंता को मिलै, संतोषी शुचियार ||
अपनो स्वार्थ ना करै, पर पिंडपोषणहार ||3|
पर पिंडपोषणहार जीवत मरै, पावै मोक्ष द्वार ||4||
एहस पाहल भाईयो, साधे लिवी बिचार |
एहस पाहल भाईयो, थुले मेल्हि हार ||5||
एहस पाहल भाईयो, ऋषी सिद्धो के काज |
एहस पाहल भाईयो, उधारियो प्रहलाद ||6||
तेतीस कोटि देवांकुली, लाधो पहल बन्द |
एहस पाहल भाईयो, उधारियो हरीचंद ||7||
पाहल लिन्हि कुंती माता, होती करनी सार |
साधु एहा भेटीया, मिल्यो मोक्ष को द्वार ||8||
आओ पाँचो पांडव, गुरु की पाहल मत ल्योह |
पाहल सार न जानहीँ, तिस पाहल मत द्योह ||9||
पाहल गति गंगा तनी, जेकर जानै कोय |
पाप शरीरा फड़ पड़े, पुण्य बहुत सा होय ||10||
नेम तलाई नेम जल, नेम का जीमे पाहल |
कायम राजा आइयो , बैठो पाँव पखाल ||11||
ऋषि थाप्या गति उधरे, देता दिए पाहल |
वन वनचंदन न अगरण, सर सर कमल न फूल ||12||
एका एकि होय जपो, ज्यो भागै भ्रमभूल |
अड़सठ तीर्थ काय फ़िरो, न ईन पाहल समतूल ||13||
गोवल गोवल को धवल, सब सन्ता दातार |
विष्णु नाम सदा जीम, पाहल एह विचार ||14||
सदगुरु बोले भाईयो, संत सिद्ध शुचियार |
मत्स्य की पाहल, कुर्म की पाहल ||
बाराह की पाहल, बामन की पाहल |
नृसिँह की पाहल, परशुराम की पाहल ||
राम-लक्ष्मण की पाहल, कृष्ण की पाहल |
बुद्व की पाहल,निष्कलंक की पाहल |
सर्वाधार सर्वशक्तिमान सर्वेश्वर, मेरे जम्भेश्वर की पाहल ||15 ||इति||
सधूना दर्शनम्पुन्यम, सन्मुखे पापनाशनम |2||
जन्म फिरंता को मिलै, संतोषी शुचियार ||
अपनो स्वार्थ ना करै, पर पिंडपोषणहार ||3|
पर पिंडपोषणहार जीवत मरै, पावै मोक्ष द्वार ||4||
एहस पाहल भाईयो, साधे लिवी बिचार |
एहस पाहल भाईयो, थुले मेल्हि हार ||5||
एहस पाहल भाईयो, ऋषी सिद्धो के काज |
एहस पाहल भाईयो, उधारियो प्रहलाद ||6||
तेतीस कोटि देवांकुली, लाधो पहल बन्द |
एहस पाहल भाईयो, उधारियो हरीचंद ||7||
पाहल लिन्हि कुंती माता, होती करनी सार |
साधु एहा भेटीया, मिल्यो मोक्ष को द्वार ||8||
आओ पाँचो पांडव, गुरु की पाहल मत ल्योह |
पाहल सार न जानहीँ, तिस पाहल मत द्योह ||9||
पाहल गति गंगा तनी, जेकर जानै कोय |
पाप शरीरा फड़ पड़े, पुण्य बहुत सा होय ||10||
नेम तलाई नेम जल, नेम का जीमे पाहल |
कायम राजा आइयो , बैठो पाँव पखाल ||11||
ऋषि थाप्या गति उधरे, देता दिए पाहल |
वन वनचंदन न अगरण, सर सर कमल न फूल ||12||
एका एकि होय जपो, ज्यो भागै भ्रमभूल |
अड़सठ तीर्थ काय फ़िरो, न ईन पाहल समतूल ||13||
गोवल गोवल को धवल, सब सन्ता दातार |
विष्णु नाम सदा जीम, पाहल एह विचार ||14||
सदगुरु बोले भाईयो, संत सिद्ध शुचियार |
मत्स्य की पाहल, कुर्म की पाहल ||
बाराह की पाहल, बामन की पाहल |
नृसिँह की पाहल, परशुराम की पाहल ||
राम-लक्ष्मण की पाहल, कृष्ण की पाहल |
बुद्व की पाहल,निष्कलंक की पाहल |
सर्वाधार सर्वशक्तिमान सर्वेश्वर, मेरे जम्भेश्वर की पाहल ||15 ||इति||