अथ कलश पूजा
ओ३म् समरथ कथा सुणो सब कोई | ताते पृथ्वी उत्पति होई |
अकलरूप मनसा उपराजी । तामा पांचतत्व होय राजी ।। 1।।
आकाश वायु तेज जल धरणी, तामा सृष्टि की करणी ।।2।।
ता समरथ को सुणो विचार । सप्तद्वीप नवखण्ड प्रमाण ।।3।।
पांचतत्व मिल इण्ड उपायों। विगस्यो इण्ड धरणि ठहरायों।।4।।
इण्ड मध्ये जल उपजायों। जलमां विष्णु रूपं ऊपनों |
ता विष्णु को नाभ कमल विगसानों। तामां ब्रह्मा बीज ठहरायों।5।।
ता ब्रह्मा की उतपति होई । भानै घडे सवारै सोई ।।6।।
कुलाल कर्म करत है सोई । पृथ्वी ले पाके तक होई ।। 7।।
आदि कुम्भ जहां उत्पन्नों सदा कुम्भ प्रवर्त्तते ।। 8।।
कुम्भ की पूजा जे नर करते । तेज काया भौखण्डते ।।9।।
अलील रूप निरंजनो ।। जाके न थे माता न थे पिता न ये कुटूम्ब सहोदरम् ।।
जे करे ताकि सेवा । ताका पाप दोष क्षय जायते।। 10।।
आदि कुम्भ कमल की घडी। ।अनादि पुरूष ले आगे धरी।। 10।।
बैठा ब्रह्मा बैठा इन्द्र । बैठा सकल रवि अरु चन्द्र ।। 12।।
बैठा ईश्वर दो कर जोड़ । बैठा सुर तेतीसां क्रोड़ ।। 13।।
बैठी गंगा यमुना सरस्वती । थरपना थापी बाले निरंजन गोरख जती ।। 14।।
सत्रह लाख अठाईस हजार सतयुग प्रमाण । सतयुग के पहरें में सुवर्ण को घाट सुवर्ण को पाट । सुवर्ण को कलश । सुवर्ण को टको । पांच क्रोड़या कै मुखी गुरू श्रीप्रहलादजी महाराज कलश थाप्यो । वै कलश जो धर्म हुआ सो इस कलश हुइयो। श्री सिद्वेश्वर महाराज भला करियो। ओ३म् विष्णों तत्सत् ब्रह्मणे नम: ।। 15।।
बारह लाख छियानवे हजार। त्रेतायुग प्रमाण । त्रेतायुग के पहरे में रूपे को घाट । रूपे को पाट । रूपे को कलश। सुवर्ण को टको। सात क्रोड़या कै मुखी राजा हरिष्वन्द्र तारादे रोहितास कलश थाप्यो । वै कलश जो धर्म हुआ सो इस कलश हुइयो। श्री सिद्वेश्वरमहाराज भला करियो । ओ३म् विष्णों तत्सत् ब्रह्मणे नम: ।। 16।।
आठ लाख चौसठ लाख हजार द्वापर युग प्रमाण द्वापर के पहरे में तांबे को घाट तांबे को पाट । तांबे को कलश । रूपे को टको । नवक्रोड़या के मुखी राजा युधिष्ठर कुन्ती माता द्रोपदी पांच पाण्डव कलश थाप्यो । वै कलश जो धर्म हुआ सो इस कलश हुइयों | श्री सिद्वेश्वर महाराज भला करियो । ओ३म् विष्णों तत्सत् ब्रह्मणे नम: ।। 17।।
चार लाख बत्तीस हजार कलियुग प्रमाण । कलियुग के पहरे में माटी को घाट माटी को पाट । माटी को कलश। तांबा को टको । अनन्त क्रोड़या कै मुखी मैं जम्भेश्वर कलश थाप्यो । वै कशल जो धर्म्म हुआ सो इस कलश हुइयो । श्री सिद्वेश्वर महाराज भला करियो । ओ३म् विष्णों तत्सत् ब्रह्मणें नमः ।। 18।।
इति श्री जम्भेश्वर प्रणीतम् कलश पूजा सम्पूर्णम् ।।
अकलरूप मनसा उपराजी । तामा पांचतत्व होय राजी ।। 1।।
आकाश वायु तेज जल धरणी, तामा सृष्टि की करणी ।।2।।
ता समरथ को सुणो विचार । सप्तद्वीप नवखण्ड प्रमाण ।।3।।
पांचतत्व मिल इण्ड उपायों। विगस्यो इण्ड धरणि ठहरायों।।4।।
इण्ड मध्ये जल उपजायों। जलमां विष्णु रूपं ऊपनों |
ता विष्णु को नाभ कमल विगसानों। तामां ब्रह्मा बीज ठहरायों।5।।
ता ब्रह्मा की उतपति होई । भानै घडे सवारै सोई ।।6।।
कुलाल कर्म करत है सोई । पृथ्वी ले पाके तक होई ।। 7।।
आदि कुम्भ जहां उत्पन्नों सदा कुम्भ प्रवर्त्तते ।। 8।।
कुम्भ की पूजा जे नर करते । तेज काया भौखण्डते ।।9।।
अलील रूप निरंजनो ।। जाके न थे माता न थे पिता न ये कुटूम्ब सहोदरम् ।।
जे करे ताकि सेवा । ताका पाप दोष क्षय जायते।। 10।।
आदि कुम्भ कमल की घडी। ।अनादि पुरूष ले आगे धरी।। 10।।
बैठा ब्रह्मा बैठा इन्द्र । बैठा सकल रवि अरु चन्द्र ।। 12।।
बैठा ईश्वर दो कर जोड़ । बैठा सुर तेतीसां क्रोड़ ।। 13।।
बैठी गंगा यमुना सरस्वती । थरपना थापी बाले निरंजन गोरख जती ।। 14।।
सत्रह लाख अठाईस हजार सतयुग प्रमाण । सतयुग के पहरें में सुवर्ण को घाट सुवर्ण को पाट । सुवर्ण को कलश । सुवर्ण को टको । पांच क्रोड़या कै मुखी गुरू श्रीप्रहलादजी महाराज कलश थाप्यो । वै कलश जो धर्म हुआ सो इस कलश हुइयो। श्री सिद्वेश्वर महाराज भला करियो। ओ३म् विष्णों तत्सत् ब्रह्मणे नम: ।। 15।।
बारह लाख छियानवे हजार। त्रेतायुग प्रमाण । त्रेतायुग के पहरे में रूपे को घाट । रूपे को पाट । रूपे को कलश। सुवर्ण को टको। सात क्रोड़या कै मुखी राजा हरिष्वन्द्र तारादे रोहितास कलश थाप्यो । वै कलश जो धर्म हुआ सो इस कलश हुइयो। श्री सिद्वेश्वरमहाराज भला करियो । ओ३म् विष्णों तत्सत् ब्रह्मणे नम: ।। 16।।
आठ लाख चौसठ लाख हजार द्वापर युग प्रमाण द्वापर के पहरे में तांबे को घाट तांबे को पाट । तांबे को कलश । रूपे को टको । नवक्रोड़या के मुखी राजा युधिष्ठर कुन्ती माता द्रोपदी पांच पाण्डव कलश थाप्यो । वै कलश जो धर्म हुआ सो इस कलश हुइयों | श्री सिद्वेश्वर महाराज भला करियो । ओ३म् विष्णों तत्सत् ब्रह्मणे नम: ।। 17।।
चार लाख बत्तीस हजार कलियुग प्रमाण । कलियुग के पहरे में माटी को घाट माटी को पाट । माटी को कलश। तांबा को टको । अनन्त क्रोड़या कै मुखी मैं जम्भेश्वर कलश थाप्यो । वै कशल जो धर्म्म हुआ सो इस कलश हुइयो । श्री सिद्वेश्वर महाराज भला करियो । ओ३म् विष्णों तत्सत् ब्रह्मणें नमः ।। 18।।
इति श्री जम्भेश्वर प्रणीतम् कलश पूजा सम्पूर्णम् ।।