रामूजी खोड़ का बलिदान :
सत्रहवीं शताब्दी के अन्तिम समय में अपने प्राणो का बलिदान देने वाले रामूजी खोड़ गोत्र के बिश्नोई थे। उन्होंने राज कर्मचारियो द्वारा जबरदस्ती से कर उगहाने के विरोध में अपने को युद्ध की विभीषिका में होम दिया। जोधपुर से लग भग चालीस कि.मी.पूर्व में कापरहेड़ा गांव है। वहां पर उस समय विशाल मेले का आयोजन होता था दूर दूर से लोग क्रय-विक्रय करने के लिये आते थे। प्रत्येक वस्तु का वहा व्यापार होता था। सम्पूर्ण भारत से व्यापारी वहां पहुंचते थे। इसी मेले में ही जाम्भाणी लोग भी जाते थे। प्रत्येक वर्ष इस मेले का आयोजन चैत्र के महीने में होता था। बे खटके लोग मेले में प्रवेश करते थे। कभी किसी प्रकार का कर नहीं लगाया जाता था। और नहीं लोगो का ऐसा कर देने का स्वभाव ही था।
संवत् सत्रह सौ के चैत्र मेले में कापरेहड़ा में राजा की आज्ञा लियक बिना ही मेले में प्रवेश कर लगा दिया था। प्रत्येक व्यक्ति एवं पशु धन,सामान आदि सभी पर कर लाया गया था। गरीब जनता में त्राहि त्राहि मच गयी थी। राज कर्मचारियों के सामने जाकर विरोध करने की हिम्मत किसी को भी नहीं पड़ रही थी। जिस प्रकार से अन्य लोगो से अन्याय पूर्वक जबरदस्ती से कर लिया जा रहा था उसी प्रकरा बिश्नोइयो से भी डाण-कर मांगा गया,तब बिश्नोई बन्धुओ ने कर देने से मना कर दिया।
जब कर्मचारियो ने पूछा-आप लोग ही क्यों नहीं देते? तब बिश्नोइयो ने कहा-हम जाम्भोजी के शिष्य है,हमारे लिये सभी जगहों पर कर-डाण माफ है। जहां कही भी अन्याय होगा,हम उसे सहन नहीं करेगें। वह चाहे हरे वृक्ष काटने का हो? चाहे वन्य जीव मारने की बात हो अथवा गरीब जनता को कष्ट देने की बात हो। हम इसका डट कर विरोध करेंगे,स्वंय मर जायेगें,दुष्टो को मार देगें,किन्तु अपने सामने अन्याय नहीं होने देगें। इस बात को आप ठीक से समझ ले और हमारे तथा इन जनता के सामने से हट जाये।
राजकर्मचारियो ने उन बिश्नोइयो की बात को अनसुनी कर दी और लोगो से कर उगाहना प्रारम्भ कर दिया। बिश्नोइयो की जब बारी आयी तब उन्होंने कुछ भी नहीं दिया। बिना कुछ दिये,उन कर्मचारियो की परवाह किये बिना ही मेले में प्रवेश कर गये। उसी समय ही उन्होने रोका तो आपस में लड़ाई प्रारम्भ कर दी गयी।
एक तरफ तो जाम्भोजी के शिष्य और दूसरी तरफ राजकर्मचारी थे। मोर्चा बन्दी होकर युद्ध का रूप धारण कर लिया। दोनो तरफ से तलवारे खींच ली गयी,कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं था। सभी अपनी आन मान की दुहाई पर डटे हुऐ थे। उसी समय ही रामू जी खोड़ दूल्हा बने हुऐ बारात सहित विवाह के लिये जा रहे थे। सिर पर मोड़ बंधा हुआ था। बारात सहित रामूजी ने देखा कि भीड़ इक_ी हो रही है। काफी शोर शराबा भी हो रहा है। अपने गन्तव्य स्थान में जाकर उस भीड़ में प्रवेश कर गये और पूछा कि क्या बात है?ऐसा क्या होने जा रहा है
उस समय वहां के लोगो ने स्थिति से अवगत करवाया। रामू जी ने भीड़ में प्रवेश करते हुऐ सभी लोगो को पीछे हटाया और कहा-अब आप लोग रूक जाओ,मैं विवाह करने जारहा हूं,मुझे तो विवाह ही रचाना है तो फिर यहां पर ही क्यों न रचाऊं। ऐसा मौका बार बार कहां मिलता है। कुछ दिनो के पश्चात तो यहां से जाना ही होगा इससे तो अच्छा है कि अभी तुरंत ही इस परोपकार कार्य को करता हुआ पहुंच जाऊ।
बाद में तो यमराज जबरदस्ती खींच के ले जायेगें। अब तो मैं स्वंय ही अपना मार्ग चुन लेता हूं। आप लोग अनेक युद्ध में आहत होगे,इससे कुछ भी लाभ नहीं है। यदि मेरे एक के प्राण देने से आप लोगो के प्राण भी बचेंगे तथा मर्यादा की पाज पुन: बंध जायेगी। अन्याय सदा के लिये बंद हो जायेगा। मैं अभी युवा हूं जैसी युद्ध में करामात दिखा सकता हूं शायद आप उतनी नहीं दिख सकोगे। अन्य उपस्थित जन समूह ने रामूजी का ही अनुसरण किया।
रण भेरी बज उठी दोनो तरफ से भयंकर युद्ध हुआ,इधर तो नेतृत्व रामोजी कर रहे थे उधर वहां के राजकर्मचारियो का प्रधान। रामोजी अपनी वीरता दिखाते हुऐ अनेक लोगो को मौत के घाट उतारा और अन्तिम में स्वंय ही मृत्यु का वरण किया। वही पर ही रण में युद्ध करते हुऐ बलिदान दे दिया। रामोजी की स्वर्ग यात्रा के साथ ही युद्ध रूक गया
जोधपुर राज दरबार तक खबर पहुंची तब राजकर्मचारियो को ही राजा ने दंडित किया। तथा शूरवीर रामोजी के लिये बार बार धन्यवाद कहा। उसी दिन से ही स्वंय राजा ने ही आज्ञा प्रसारित कर दी कि इस बलिदान के बदले में यही कर सकता हूं कि पुन:कभी भी राजकर्मचारी मेले आदि में इस प्रकार का कर नहीं लगायेगें। सत्य निष्ठा के साथ प्रजा का पालन करूंगा। मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे राज्य में ऐसे शूरवीर लोग निवास करते है।
धवा गांव के निवासी रामोजी खोड़ का यह अद्भुत और निराला ही बलिदान था। यह घटना केशोजी के अनुसार वि.स.सत्रह सौ में चैत्र सुदी एकादशी मघा नक्षत्र वार मंगलवार को घटित हुई थी। इस घटना के स्वंय केशो जी प्रत्यक्ष दृष्टा थे। जिन्होंने एक साखी '''हटवाड़े हलचल हुवो'' में विस्तार से वर्णन किया है। साहबरामजी ने केशोजी का अनुसरण करते हुऐ जम्भसार में कथा के रूप में वर्णन की है।
इस घटना के कुछ समय पूर्व ही रामोजी ने भाव विभोर होकर एक साखी की रचना की थी ऐसा लगता है कि रामोजी सांसारिक बंधन में बंधने के लिये सिर पर मोड़ बांध कर भले ही जा रहे हो किन्तु उसकी भावना तो सदा ही परलो%