मध्य भारत का बिश्नोई समाज
अहिंसक, क्रान्तिकारी, आडम्बरहीन, समाजवादी, सदाचारी, अध्यात्मवादी एवं साधु सदृश बिश्नोई धर्म के वर्तमान मे लगभग 25 लाख उपासक देश विदेश के विभिन्न हिस्सो मे निवास कर रहे है मुख्यत राजस्थान,हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश मे इनकी आबादी ज्यादा है l
देश का मध्य भाग कहे जाने वाले राज्य मध्यप्रदेश मे लगभग 15 हजार से भी ज्यादा जनंसख्या बिश्नोई समुदाय के लोगों की है l जहां देवास, हरदा, नरसीगपुर, इन्दौर, जबलपुर, रायसैन जिलों के लगभग 35 से भी अधिक गांवो मे बिश्नोई समाज के लोग रहते है जिनमे नीमगांव, खातेगांव, सावदा ,फाडपा खाला ,छीगगांव ,गाडोवाला, उदयपुरा व जामली प्रमुख है यहा गोदारा, सियाग, सारण, खावा, मांजु, खोखर, जांणी, कालीराणा व इराम इत्यादी प्रमुख बिश्नोई गौत्र हैl (यहा देवास व हरदा मे ही बिश्नोई गौत्र वाले बिश्नोई है बाकी जगह के बिश्नोई जैसे बिश्नोई गुप्ता बिश्नोई अग्रवाल आदी टाईटल लगाते है) और जिस तरह राजस्थान व हरियाणा मे खेतीबाडी से जुडे हुए लोगो को चौधरी की उपाधी से जाना जाता है ठीक उसी तरह यहा भी ब्रिटिश शासन काल से ही काश्तकारो को पटेल की उपाधी से जाना जाता है इसी के चलते यहा भी कई बिश्नोईजन अपने नाम के साथ पटेल शब्द लगाते है lयहा के बिश्नोई कुछ परम्पराओ से बाकी जगहो के बिश्नोई समाज से अलग है जैसे यहा मृत शरीर को भुमीदाग के बजाय अग्निदाग दिया जाता है l
यहा के निवासियों मे सबसे बडी सख्या प्रवासी राजस्थानीयो की है जो कालान्तर मे राजस्थान के पश्चमी रेगीस्तानी भाग मारवाड प्रान्त मे पडने वाले अकालो की वजह से अपनी आजीविका पुर्ती के लिए मारवाड से पलायन कर के मध्यप्रदेश के इस मालवा क्षेत्र मे आ गये थेl
राजस्थान के मशहूर लोकगायक चम्पां मैथी ने भी इसका वर्णन अपने बहुत से लोकगीतो मे किया जिसमे "महुआ चाली मालवे न लारे बरसो मेष" व "25 सा रे काल भल्ल मत आई भोली मारवाड मे ..." ओर यही कारण है कि यहा के लोग आज भी मारवाडी भाषा अच्छी तरह से समझ ओर बोल सकते हैl इन लोगो के मालवा प्रदेश मे आने की वजह एक ओर यह भी मानी जाती है कि यह माता पार्वती का पीवर स्थान था ओर उनके दिये गये वरदान के ही कारण यहा कभी अकाल नही पडता है l
यहा श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान के जीवन काल के समय की कोई विरासत देखने को नही मिली है ओर ना ही किसी घटना का कोई प्रमाण है विदेशो मे बिश्नोई धर्म का प्रचार करने के बाद वापिस लौटते समय गुरु महाराज यहा के कई स्थानो से होकर गुजरे थे जिसमे हडिया (जो की मुगल शासनकाल मे एक बडी रियासत थी) मांडु व उज्जैन मे विश्राम किया तथा वहा के लोगो को जिवन मे धर्म के महत्व को समझाया व धर्म के मार्ग पे चलने के उपदेश सुनाये जिस का उल्लेख गुरु महाराज ने अपने शब्दो मे किया है l शब्द संख्या 67 (शुक्ल हंस)
"आछो जाई सवालाब मालवै परबत माडूँ माहीं ज्ञान कथूं । सुरसाण गढ लंका भीतर गूगल खेऊं पैरठयों । ईडर कोट उजैणी नगरी । कहिंदा सिंधपुरी विश्रामलीयों "
गुरु महाराज आगे इसी रास्ते राजस्थान के मालाणी प्रान्त से होते हुए वापिस समराथल आये थे l यहा के बिश्नोईजनो का जीवन स्तर काफी आधुनिक है
एक आर्दश समाज के सभी गुणो के अलावा हमारी बहुमुल्य सस्क्रति की झलक यहा आसानी से देखी जा सकती है l खेती बाडी के अलावा व्यापार व सरकारी सेवाओ मे भी यहा का बिश्नोई समाज बाकी समुदायो से अव्वल है बात चाहे खेल के मैदान की हो या सियाशी राजनीती की यहा के बिश्नोईयो ने हमेशा अपना प्रचम लहराया है जहा अर्न्तराष्टीय कुश्ती मे दस बार स्वर्ण पदक जीत कर अर्जुन पुस्कार प्राप्त कर क्रपाशंकर बेनीवाल ने समाज का नाम रोशन किया वही भारत केसरी सम्मान से सम्मानित रोहित पटेल व अर्पणा विश्नोई ने भी राष्टीय स्तर पर समाज का गौरव बढाया वही अजय बिश्नोई ने मध्यप्रदेश सरकार मे केबीनेट मंत्री का पद प्राप्त कर राजनैतीक क्षैत्र मे समाज की पकड मजबुत की है
यहा के बिश्नोईजनो का श्री गुरु जम्भेश्वर भग्वान के प्रति इनकी अटूट आस्था है ओर गुरु महाराज द्वारा बताये हुए नियमो पे आज भी अटल है यहा हर साल विश्नोई समाज के लोगो द्वारा जम्भेश्वर जन्म अष्टमी को बडे स्तर पे पर्यावरण चेतना रैली निकली जाती है जो की पुरे प्रदेश मे लोकप्रिय है
हरदा जिले ले से 6 दुर नीमगांव मे श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का भव्य मंदिर है जिसका निर्माण लगभग एक शताब्दी पुर्व यानी सन 1914 मे हुआ था यहा हर माह क्रष्णपक्ष की चौदस को जागरण व हर अमावस को हवन होता है l जिसमे पुर्ण 120 पवित्र शब्दो का पाठ होता है ( यहा किसी भी अवसर पे होने वाले हवन मे पुर्ण 120 शब्दो का ही पाठ होता है चाहे जागरण हो या अन्य कोई शुभ कार्य )
हरदा और देवास जिलो को दो भागो मे विभाजीत करने वाली पवित्र नर्मदा नदी के तट पे नेमावर मे भी श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का भव्य मंदिर है जिसका निर्माण पुज्य संत भगवान दास जी ने यहा के बिश्नोई समाज के सहयोग से करवाया यह मंदिर पहाडी की ऊपरी शीखर पे होने के कारण इसकी सुन्दरता की छटा मिलो दुर से देखी जा सकती है l इसके अलावा खातेगांव मे भी श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का विशाल भव्य मंदिर व बिश्नोई धर्मशाला है जहा हर वर्ष माह की अमावस को मेले का आयोजन होता है l यहा धार्मिक कार्यो के अलावा समुहिक विवाहो का भी आयोजन किया जाता है जो कि विवाहो मे होने वाले अनावश्क खर्चो पे अंकुश लगाने और बाल-विवाह व दहेज-प्रथा जैसी सामाजिक कुरुतियो के उन्मुलन के लिए एक सकारात्मक कदम है
""जय जम्भेश्वर ....!
पप्पु बिश्नोई
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
देश का मध्य भाग कहे जाने वाले राज्य मध्यप्रदेश मे लगभग 15 हजार से भी ज्यादा जनंसख्या बिश्नोई समुदाय के लोगों की है l जहां देवास, हरदा, नरसीगपुर, इन्दौर, जबलपुर, रायसैन जिलों के लगभग 35 से भी अधिक गांवो मे बिश्नोई समाज के लोग रहते है जिनमे नीमगांव, खातेगांव, सावदा ,फाडपा खाला ,छीगगांव ,गाडोवाला, उदयपुरा व जामली प्रमुख है यहा गोदारा, सियाग, सारण, खावा, मांजु, खोखर, जांणी, कालीराणा व इराम इत्यादी प्रमुख बिश्नोई गौत्र हैl (यहा देवास व हरदा मे ही बिश्नोई गौत्र वाले बिश्नोई है बाकी जगह के बिश्नोई जैसे बिश्नोई गुप्ता बिश्नोई अग्रवाल आदी टाईटल लगाते है) और जिस तरह राजस्थान व हरियाणा मे खेतीबाडी से जुडे हुए लोगो को चौधरी की उपाधी से जाना जाता है ठीक उसी तरह यहा भी ब्रिटिश शासन काल से ही काश्तकारो को पटेल की उपाधी से जाना जाता है इसी के चलते यहा भी कई बिश्नोईजन अपने नाम के साथ पटेल शब्द लगाते है lयहा के बिश्नोई कुछ परम्पराओ से बाकी जगहो के बिश्नोई समाज से अलग है जैसे यहा मृत शरीर को भुमीदाग के बजाय अग्निदाग दिया जाता है l
यहा के निवासियों मे सबसे बडी सख्या प्रवासी राजस्थानीयो की है जो कालान्तर मे राजस्थान के पश्चमी रेगीस्तानी भाग मारवाड प्रान्त मे पडने वाले अकालो की वजह से अपनी आजीविका पुर्ती के लिए मारवाड से पलायन कर के मध्यप्रदेश के इस मालवा क्षेत्र मे आ गये थेl
राजस्थान के मशहूर लोकगायक चम्पां मैथी ने भी इसका वर्णन अपने बहुत से लोकगीतो मे किया जिसमे "महुआ चाली मालवे न लारे बरसो मेष" व "25 सा रे काल भल्ल मत आई भोली मारवाड मे ..." ओर यही कारण है कि यहा के लोग आज भी मारवाडी भाषा अच्छी तरह से समझ ओर बोल सकते हैl इन लोगो के मालवा प्रदेश मे आने की वजह एक ओर यह भी मानी जाती है कि यह माता पार्वती का पीवर स्थान था ओर उनके दिये गये वरदान के ही कारण यहा कभी अकाल नही पडता है l
यहा श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान के जीवन काल के समय की कोई विरासत देखने को नही मिली है ओर ना ही किसी घटना का कोई प्रमाण है विदेशो मे बिश्नोई धर्म का प्रचार करने के बाद वापिस लौटते समय गुरु महाराज यहा के कई स्थानो से होकर गुजरे थे जिसमे हडिया (जो की मुगल शासनकाल मे एक बडी रियासत थी) मांडु व उज्जैन मे विश्राम किया तथा वहा के लोगो को जिवन मे धर्म के महत्व को समझाया व धर्म के मार्ग पे चलने के उपदेश सुनाये जिस का उल्लेख गुरु महाराज ने अपने शब्दो मे किया है l शब्द संख्या 67 (शुक्ल हंस)
"आछो जाई सवालाब मालवै परबत माडूँ माहीं ज्ञान कथूं । सुरसाण गढ लंका भीतर गूगल खेऊं पैरठयों । ईडर कोट उजैणी नगरी । कहिंदा सिंधपुरी विश्रामलीयों "
गुरु महाराज आगे इसी रास्ते राजस्थान के मालाणी प्रान्त से होते हुए वापिस समराथल आये थे l यहा के बिश्नोईजनो का जीवन स्तर काफी आधुनिक है
एक आर्दश समाज के सभी गुणो के अलावा हमारी बहुमुल्य सस्क्रति की झलक यहा आसानी से देखी जा सकती है l खेती बाडी के अलावा व्यापार व सरकारी सेवाओ मे भी यहा का बिश्नोई समाज बाकी समुदायो से अव्वल है बात चाहे खेल के मैदान की हो या सियाशी राजनीती की यहा के बिश्नोईयो ने हमेशा अपना प्रचम लहराया है जहा अर्न्तराष्टीय कुश्ती मे दस बार स्वर्ण पदक जीत कर अर्जुन पुस्कार प्राप्त कर क्रपाशंकर बेनीवाल ने समाज का नाम रोशन किया वही भारत केसरी सम्मान से सम्मानित रोहित पटेल व अर्पणा विश्नोई ने भी राष्टीय स्तर पर समाज का गौरव बढाया वही अजय बिश्नोई ने मध्यप्रदेश सरकार मे केबीनेट मंत्री का पद प्राप्त कर राजनैतीक क्षैत्र मे समाज की पकड मजबुत की है
यहा के बिश्नोईजनो का श्री गुरु जम्भेश्वर भग्वान के प्रति इनकी अटूट आस्था है ओर गुरु महाराज द्वारा बताये हुए नियमो पे आज भी अटल है यहा हर साल विश्नोई समाज के लोगो द्वारा जम्भेश्वर जन्म अष्टमी को बडे स्तर पे पर्यावरण चेतना रैली निकली जाती है जो की पुरे प्रदेश मे लोकप्रिय है
हरदा जिले ले से 6 दुर नीमगांव मे श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का भव्य मंदिर है जिसका निर्माण लगभग एक शताब्दी पुर्व यानी सन 1914 मे हुआ था यहा हर माह क्रष्णपक्ष की चौदस को जागरण व हर अमावस को हवन होता है l जिसमे पुर्ण 120 पवित्र शब्दो का पाठ होता है ( यहा किसी भी अवसर पे होने वाले हवन मे पुर्ण 120 शब्दो का ही पाठ होता है चाहे जागरण हो या अन्य कोई शुभ कार्य )
हरदा और देवास जिलो को दो भागो मे विभाजीत करने वाली पवित्र नर्मदा नदी के तट पे नेमावर मे भी श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का भव्य मंदिर है जिसका निर्माण पुज्य संत भगवान दास जी ने यहा के बिश्नोई समाज के सहयोग से करवाया यह मंदिर पहाडी की ऊपरी शीखर पे होने के कारण इसकी सुन्दरता की छटा मिलो दुर से देखी जा सकती है l इसके अलावा खातेगांव मे भी श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का विशाल भव्य मंदिर व बिश्नोई धर्मशाला है जहा हर वर्ष माह की अमावस को मेले का आयोजन होता है l यहा धार्मिक कार्यो के अलावा समुहिक विवाहो का भी आयोजन किया जाता है जो कि विवाहो मे होने वाले अनावश्क खर्चो पे अंकुश लगाने और बाल-विवाह व दहेज-प्रथा जैसी सामाजिक कुरुतियो के उन्मुलन के लिए एक सकारात्मक कदम है
""जय जम्भेश्वर ....!
पप्पु बिश्नोई
इन्दौर (मध्यप्रदेश)