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अथ गौत्राचार

                                      ओउम सन्मुखे सन्मुखे जदुवासरूपम् | पूज्यत्रम सामनिधिम् | गुण निधिम् | आकाश पितरम् | सतारामम् | पंचम पाताल मुखम् | वरुणते शिवमुखम् ||१|| श्री पार्वत्युवाच | कस्मिन् मासे ,कस्मिन् पक्षे ,कस्मिन् तिथौ , कस्मिन् वासरे , कस्मिन् नक्षत्रे ,कस्मिन् लग्ने उत्पन्नोंसौ ||२|| श्री महादेव उवाच | आषाढ मासे , कृष्ण पक्षे , अर्द्व रात्रौ , मीन लग्ने , चतुर्दश्यां , शनिवाचरे , रोहिणी नक्षत्रे , ऊर्ध्वमुखे ,दृष्टपाताले , अगोचर नामाग्नि: ||३|| श्री पार्वत्युवाच | कातस्य माता ,क्वतस्य पिता , क्वतस्य गौत्र: , कति जिह्वा प्रकशित ||४|| श्री महादेव उवाच | अरणस माता वरुणस्पिता , शाण्डिल्य गौत्रे: , वनस्पतिपुत्रम् पावकनामकम् वसुंधरम् ||५|| चत्वारि श्रृंगा त्रयो अस्य पादा द्वेशीर्षे सप्तहस्तासोस्य | त्रिधावद्वो वृषभोरोरवित महादेवोमर्त्यां आविवेश ||६|| निखिल ब्रह्मांडमुदरे यस्य द्वादश लोचनम् | सप्त जिह्वा | काली कराली च मनोजवा च सुलोहिता या च सुधूम्रवर्णा स्फुलिगिनी विश्वरूपी च देवी लेलायमाना इति सप्तजिह्वा ||८|| प्रथमस्तु घृतम् द्वितीय यवम् | तृतीय तिलम् | चतुर्थे दधि | पंचमे क्षीरम् | षष्टे श्रीखंडम् | सप्तमे मिष्टानम् | एतानि सप्तअग्नेर्भोजनानी | एतै: सप्तजिह्वा प्रकाश्यन्ते ||९|| ऊर्ध्वमुखा भिमुखे: साहायक्रोती | घृतमिष्टानदि पदार्था: महाविष्णु मुखे प्रविशन्ति | सर्वे देवा ब्रह्मा विष्णु: महेश्वरादयस्तृप्यन्ति ||१०|| अग्निमीले पुरोहितम् यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतांर रत्नधातम् ||११|| अग्नि: पूर्वे भिॠर्षिभिरीड्यो नूतनै रुतासदेवां | एहवक्षति ||१२|| अग्निनारयि मश्ऩवत्पोषमेव दिवे दिवे | यश संवीरवत्तमम् ||१३|| अग्नेयं यज्ञ मध्वरम् विश्वत: परिभूरसि | सइद्वेवेषु गच्छति ||१४|| अग्निर्होता- कविक्रतु: सत्यशि्चत्रश्रस्तम: देवोदेवे भिरागमत् ||१५|| यंदगदाशुषे त्वमग्ने भंद्र करिष्यसि | त्वेत्तत्सत्यमंगिर: ||१६|| उपत्वाग्ने दिवे दिवे दोषावस्तर्धियावयम् | नमो भरंत एमसि ||१७|| राजतमध्वराणा  गोपामृतस्यदीदिविम् | वर्धमानं स्वेदमे ||१८|| सन: पितेव सूनवे अग्नेसुपायनोभाव | सचस्वान: स्वस्तये ||१९|| अग्ने नय सुपथा राये अस्माम् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान युयोध्य- स्मज्जुहूराणमेनो  भुयिष्ठा ते नम उक्तिं विधेम् ||२०||

        

                                                                                                  इति गौत्राचार: समाप्त: ||

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