बणीधाम (मोलिसर बड़ा,चूरू )
श्री गुरू जम्भेश्वर बणी धाम, मोलीसर बड़ाचुरू (राज.)
ऊॅं विष्णु भगवान ने सतयुग के भक्त प्रहलाद को दिये वचन को पूरा करने तथा बारह करोड़ जीवों का उद्धार करने के लिए एवं द्वापर युग में कृष्ण भगवान द्वारा नन्द बाबा एवं यशोदा माता को दिये वचनों को पूरा करने के लिए कलयुग में पिता श्री लोहट जी पंवार एवं माता हंसा देवी के घर ग्राम पीपासर में विक्रमी सम्वत् 1508 भादो बदी अष्टमी के दिन अवतार लिया । सात वर्ष तक मौन रहकर बाल लीला का कार्य किया, 27 वर्ष तक गायों की सेवा करने व चराने का पवित्र कार्य किया । सम्वत् 1540 चैत सुदी नवमी को पिता श्री लोहट जी पंवार एवं सम्वत् 1540 भादवा की पूर्णिमा को माता हंसा देवी द्वारा निर्वाण को प्राप्त होने पर संसारिक सुख एंव एश्वर्य के संसाधनों को त्यागकर विक्रमी सम्वत् 1542 में समराथल धोरे पर हरी कंकेड़ी के नीचे आसन लगाया तथा 51 वर्ष तक अमृतमयी शब्द वाणी का कथन किया तथा विभिन्न प्रकार के चमत्कार दिखाकर जड़ बुद्धि लोगों को धर्म मार्ग पर लगाकर उनका उद्धार किया । देश विदेशों में भ्रमण करते हुए लोगों को बिश्नोई पंथ का उपदेश दिया तथा विक्रमी सम्वत् 1593 इस्वी मिंगसर बदी नवमी को अंतर्ध्यान हो गए ।
सम्वत् 1507 ईस्वी में जिस प्रकार से विष्णु भगवान ने लोहट जी पंवार को साधु के वेष में दु्रणपुर (छापर) के जंगल में दर्शन देकर भिक्षा मांगी तथा बिना ब्याई बच्छी का दुध पिया तथा वरदान दिया था एवं गोवलबास में माता हंसा देवी को साधु वेष में दर्शन दिया, भिक्षा प्राप्त की तथा पुत्र वरदान दिया था । इसी प्रकार अमृतमयी शब्द वाणी का उपदेश करने के दौरान जाम्भो जी ने विक्रमी सम्वत 1580 (लगभग) के वैशाख माह में दोपहर के समय वर्तमान राजस्थान राज्य के चुरू जिला के गांव मोलीसर बड़ा की कांकड़ में साधु वेष में आकर हुक्माराम जाट पुत्र श्री बुद्धाराम सिहाग को हरी कंकेडी के नीचे दर्शन दिये थे । उस समय हुक्माराम खेत में बकरियां चरा रहा था तथा लोटड़ी में पानी खत्म हो जाने के कारण प्यास से व्याकुल था । साधु बाबा ने हुक्काराम से पानी पीने की ईच्छा व्यक्त की तो उसने कहां - महाराज मेरी लोटड़ी में पानी खत्म हो चुका है - मैं खुद प्यास के मारे व्याकुल हो रहा हॅू, तो आपको पानी कहां से पिलाऊॅ । तब साधु बाबा ने जिद करके कहां कि तेरी लोटड़ी पानी से भरी हुई है - तूं मुझे पानी पिलाना नहीं चाहता । साधु बाबा द्वारा बार-बार जिद करने पर हुक्माराम ने जैसे ही लोटड़ी का ढक्कन खोला तो देखता है कि लोटड़ी पूर्ण रूप से पानी से भरी हुई है, यह देखकर उसे बड़ा अचम्भा हुआ । उसने लोटड़ी से साधु बाबा को पानी पिलाया व बाद में स्वयं पानी पिया । फिर साधु बाबा ने कहां कि मुझे अपनी बकरी का दुध पिलाओं तो हुक्माराम ने निवेदन किया की महाराज इन बकरियों में कोई भी ऐसी बकरी नहीं है जो दूध देती है, सारी बकरियां बाखड़ी है परन्तु साधु बाबा के जिद करने पर जैसे ही हुक्माराम लोटड़ी लेकर बकरी के पास गया तो उसके स्थनों मे से दूध आने लगा । हुक्माराम ने लोटड़ी भरकर साधु बाबा को दूध पिलाया तथा चरणों में दण्डवत प्रणाम करके बोला कि साधु बाबा आप अपना परिचय बतायें मुझे तो आप साधु के वेष में साक्षात भगवान का अवतार मालूम पड़ते है । तब साधु बाबा ने कहां कि मेरा नाम जाम्भों जी है । यह कहकर जाम्भों जी ने हुक्माराम को कुछ भूमि जम्भेश्वर बणी के नाम से छोड़ने को कहां तथा यह भी कहां कि इस भूमि पर खेती मत करना साथ ही हुक्माराम को वरदान मांगने को कहां।
हुक्माराम ने जाम्भों जी से निवेदन किया की हमारे यहां पानी की बहुत कमी रहती है, कृपया इस कमी को दूर करने की विधि बताये । तब जाम्भों जी ने कहा की जब बरसात के दिनों में भी बरसात न हो तो आपके परिवार का शुद्ध व्यक्ति नंगे पांव, नंगे बदन (एक अंगोछा पहनकर) होकर एक हाथ में कच्चा घड़ा (हांड़ी) एवं दूसरे हाथ में झोली ले लेना पूरे गांव में फेरी लगाकर भिक्षा एकत्रित करना ।
हुक्माराम मन ही मन खुश हुआ तथा गांव में जाकर आपबीती घटना गांव वालों को सुनाई, जाम्भों जी के बताये समयानुसार हुक्माराम ने गांव से भिक्षा एकत्रित करके जम्भेश्वर बणी में लाकर भोग लगाया तथा बाकला जानवरों को डाला तो बहुत जोरदार बरसात हुई तब लोगों को पक्का विश्वास हो गया । तभी से उन लोगों ने उस जगह को बणी (ओरण) के रूप में छोड़ दिया तथा पूजा अर्चना करने लगे एवं जब भी किसी व्यक्ति को कोई कष्ट होता है तो जाम्भों जी की ओट लेकर ध्वजा, नारियल, प्रसाद चढाते है तो उनका कष्ट दूर हो जाता है । इस स्थान पर गोपाल राम पुत्र डूंगरराम जाट सिहाग गांव मोलीसर बड़ा ने सम्वत 2011 में लंगड़ा ऊॅट ठीक हो जाने पर चूने की घट निकालकर छोटा सा मन्दिर निर्माण करवाया था जो आज भी विद्मान है । इस मन्दिर का जीर्णोधार दिनांक 24.12.2009 को किया गया ।
गांव के लोगों द्वारा बताये अनुसार जाम्भों जी ने बहुत से दुःखी लोगो के दुःखों को दूर किया है । वर्तमान समय में इस पवित्र स्थान पर पिछले 50 वर्षो से श्री उमाराम सिहाग पुत्र श्री बिशनाराम जाट उम्र 72 वर्ष साकिन मोलीसर बड़ा अपने पूर्वजो की प्रेरणा से नित्य प्रति धूप, अगरबत्ती आदि करके पूजा करते आ रहे है तथा प्रत्येक वर्ष भादवा की चैदस बदी को इनके द्वारा जागरण लगाया जाता है । पूर्व में इनके पूर्वज सेवा पूजा करते आ रहे है । जाम्भों जी के इस पवित्र स्थल को बनाये रखा है । इस पवित्र स्थल पर श्री उमाराम सिहाग ने चार वर्ष पूर्व एक बहुत बड़ा पानी का कुण्ड बनाया था जो बरसात के पानी से आज भी भरा रहता है ।
हमारे समाज के साधु संतो को कभी कुछ ही वर्ष पूर्व इस पवित्र तीर्थ स्थल के बारे में जानकारी मिली है । स्वामी कृपाचार्य जी महाराज ने जनवरी 2007 में इस पवित्र भूमि पर 21 दिन तक नंगे बदन रहकर तपस्या की थी । उसी समय के दौरान श्री उमाराम सिहाग ने गांव के सहयोग से इस स्थान पर एक झोपड़े का निर्माण किया उसके बाद स्वामी कृपाचार्य जी महाराज के प्रयास एवं आस-पास के गांव के लोगों के सहयोग से श्री गुरू जम्भेश्वर भगवान के तीन विशाल जागरण लगाये जा चुके है ।
लोगों द्वारा आग्रह करने पर 10 अगस्त, 2008 को स्वामी कृपाचार्य जी महाराज ने इस पवित्र स्थल पर विशाल जागरण का आयोजन किया जिसमें बाहर से तथा आस-पास के गांवों से काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया । इस आयोजन में स्वामी रामानन्द जी महाराज जाम्भा के श्री महंत स्वामी भजनदास जी, स्वामी भागीरथदास शास्त्री जी महारा, स्वामी चैन प्रकाश जी महाराज व अन्य कई संतों ने भाग लिया । अगले दिन दिनांक 11.08.2008 को विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें राजस्थान सरकार के तत्कालीन मंत्री माननीय राजेन्द्र सिंह राठौड़, सांसद श्री रामसिंह कस्वां, जिला प्रमुख श्रीमती कमला देवी चोधरी , प्रधान श्री हरलाल सहारण आदि पधारे । यज्ञ के बाद भी गुरू जम्भेश्वर भगवान के मन्दिर का शिलान्यास किया गया ।
स्वामी कृपाचार्य जी महाराज के अथक प्रयास के दान राशी एकत्रित करके इस स्थान पर चार बीघा जमीन और खरीद की जाकर दिनांक 12.12.2008 से स्वामी कृपाचार्य जी महाराज द्वारा धर्मशाला व संत आश्रम का शिलान्यास कर निर्माण कार्य शुरू करवाया गया है ।
श्री गुरू जम्भेश्वर बणी धाम में आज दिनांक तक धर्मशाला के छः कमरे, विद्युत कनेक्शन, ट्यूबवेल, चुग्गाघर का निमार्ण कार्य पूर्ण हो चुका है । संतों के लिए एक कुटिया का निर्माण कार्य प्रगति पर है । भक्त मन्दिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है जिसके नीचे की एक मंजिल का कार्य पूर्ण हो चुका है तथा दुसरी मंजिल के निर्माण का कार्य प्रगति पर है ।
इस पवित्र स्थल पर विद्युत कनेक्शन का कार्य दानदाता श्री सुभाष विश्नोई पुत्र श्री महीराम गोदारा निवासी चक 3एल.एन.पी. श्रीगंगानगर द्वारा 65000/-रू. का दान देकर करवाया गया । ट्यूबवैल का निर्माण दानदाता श्री ओम प्रकाश डेलू पुत्र श्री इन्द्रजीत विश्नोई निवासी सुखचेन तहसील अबोहर जिला फिरोजपुर (पंजाब) द्वारा 85000/-रू. दान देकर करवाया गया एंव चुग्गा घर का निर्माण दानदाता श्री भगवाना राम खीचड़ पुत्र श्री छतुराम जाट निवासी सूरतपुरा जिला चुरू द्वारा 56500/-रू. देकर करवाया गया ।
श्री गुरू जम्भेश्वर बणी धाम के पुराने छोटे मन्दिर में दिनांक 26.01.2009 वार सोमवार तद्नुसार विक्रमी संवत 2065 माघ मास कृष्ण पक्ष की सोमवती अमावश्या के दिन प्रातः काल की शुभ बेला में श्री हुक्माराम जाट के वंशज श्री रामचंद्र सिहाग के हाथों से अखण्ड ज्योति प्रजवल्लित की गयी । इस मन्दिर में प्रातः ब्रह्म मूहूर्त में भगवान की मंगल आरती, सूर्योदय होने पर शुद्ध देशी घी, खोपरा द्वारा नित्य प्रति श्री गुरू जम्भेश्वर भगवान की अमृतमयी शब्दवाणी के पाठ के साथ दिनांक 13.12.2008 वार शनिवार तद्नुसार विक्रमी संवत 2065 पौष माह कृष्ण पक्ष की एकम तिथि से लगातार नित्य प्रति पर्यावरण की शुद्धि हेतु हवन किया जाता है । दिन में आस-पास के गांवों से माता-बहिनें आकर यहां भजन कीर्तन करती है । सांय काल की संध्या बेला के समय संध्या आरती, भजन साखी आदि का गान किया जाता है। इस प्रकार से यह अध्यात्मिक दृष्टि से यह अति उत्तम स्थान है, यहां पर बैठकर भजन कीर्तन करने से आत्मा को शांति मिलती है ।
कथा वाचक स्वामी कृपाचार्य जी महाराज द्वारा दिनांक 11.04.2009 से 18.04.2009 तक यहां श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का विशाल आयोजन किया गया । जिसमें कथा भवन हेतु हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के दूर दराज के गांवों से एंव आसपास के गांवों से बहुत बड़ी संख्या में श्रदालु भक्तों ने पहुंचकर अपने जीवन को धन्य बनाया । सतसंग का श्रवण कर स्वामी जी की बातों को सुनकर काफी संख्या में लोगों ने अपने जीवन में आई बुराईयों का त्याग करने का संकल्प लिया । दिनांक 18 जून, 2009 से 30 जून, 2009 तक बणी धाम के आसपास के तेरह गावों में स्वामी कृपाचार्य जी महाराज ने नशा मुक्ति एवं सामाजिक कुरूतियों के निवारण का महा अभियान चलाया । जिसके तहत रात्रि में सतसंग प्रातः काल हवन एवं प्रवचन का कार्यक्रम रखा, स्वामी जी के प्रवचनों से प्रभावित होकर प्रत्येक गांव में सैंकड़ों महिलाओं, पुरूषों एवं बच्चों ने नशा मुक्त जीवन जीने का संकल्प पत्र भरकर स्वामी जी को प्रस्तुत किया तथा भविष्य में कभी नशा नहीं करने की शपथ ग्रहण की ।
बणी धाम में अगस्त 2009 से गौशाला का संचालन शुरू किया गया वर्तमान में यहां बहुत सी गायों व बछडों की सेवा का कार्य किया जाता है । भविष्य में यह गौशाला सबसे भव्य और बड़ी गौशाला में शामिल हो यह स्वामी जी की तमन्ना है।
आगामी दिनांक 25 दिसम्बर 2009 से एक जनवरी 2010 तक यहां श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का विशाल आयोजन किया गया । कथा वाचन समाज के युवा, ओजस्वी वाणी के धनी, भागवत रस रसिक स्वामी कृपाचार्य जी महाराज के द्वारा किया गया । इस कथा के मुख्य यजमान मैसर्स - देवेन्द्र कन्सट्रक्शन कम्पनी, ए.ए.क्लास गर्वनमन्ट कान्टेक्टर श्री देवेन्द्र जी बूडिया निवासी - गुडा विश्नोईयान जोधपुर थे । इस अवसर पर सम्पूर्ण राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली आदि से और स्थानीय नागरिक हजारों की संख्या में कथा सुनने पहुचे थे ।
स्वामी जी के पावन सानिध्य में आज इस स्थान के निरन्तर विकास के लिए भक्तगण श्री शंकरलाल भादु सरपंच कुदसू बद्री प्रसाद पंवार रावला अपनी पत्नी श्रीमती बिरमा देवी के साथ, एडवोकेट रामनिवास पूनियां जेगला, मोहनलाल जाणी जाखल आदि अपना पूर्ण कालिक सहयोग दे रहे और इस पवित्र धाम को उन्नत और विकसित करने के दिन रात प्रयासरत है । जल्द ही इस पवित्र स्थल में शिक्षा का एक बहुत बड़ा केन्द्र भी खोलने की स्वामी जी की योजना है। इस धाम का उल्लेख विश्नोई साहित्य की मुख्य पुस्तक ‘‘जाम्भा-पुराण’’ लेखक स्वामी श्री कृष्णानंद जी ‘आचार्य’ ऋषिकेष में ‘‘जाम्भोजी का भ्रमण’’ अध्याय में विस्तृत रूप से पृष्ठ सं. 403 से 405 में जाम्भोजी की बणी के नाम से किया है ।
सड़क मार्ग:- चुरू से रतनगढ़ वाली सड़क पर चुरू से 20 किलोमीटर एवं रतनगढ़ से 25 किलोमीटर पहले मुख्य सड़क पर सातड़ा गांव आता है, सातड़ा से मोलीसर जाने के लिए एक लिंग रोड़ दक्षिण दिशा में जाती है । इसी लिंग रोड़ पर दो किलोमीटर चलने पर श्री गुरू जम्भेश्वर बणी धाम, मोलीसर स्थित है ।
रेलमार्ग:- चुरू से रतनगढ़ जाने वाले मार्ग पर चुरू से 18 किलोमीटर आगे जुहारपुरा रेल्वें स्टेशन एवं बीकानेर से चुरू (160 किलोमीटर) आने वाली रेलगाड़ी से जुहारपुरा रेल्वें स्टेशन उतर कर सातड़ा जाने वाली सड़क पर दो किलोमीटर चलने पर यह पवित्र धाम आता है । दिनांक 13.12.2008 के बाद में स्वामी कृपाचार्य जी महाराज के आदेश से यहां नित्य प्रति जम्भेश्वर भगवान की अमृतमयी शब्द वाणी के पाठ के साथ यज्ञ किया जा रहा है जो भी श्रद्धालुजन भगवान का मुख्य भोजन घी, खोपरा आदि भेंट करना चाहे तो उनका भगवान के दरबार में स्वागत है ।
ऊॅं विष्णु भगवान ने सतयुग के भक्त प्रहलाद को दिये वचन को पूरा करने तथा बारह करोड़ जीवों का उद्धार करने के लिए एवं द्वापर युग में कृष्ण भगवान द्वारा नन्द बाबा एवं यशोदा माता को दिये वचनों को पूरा करने के लिए कलयुग में पिता श्री लोहट जी पंवार एवं माता हंसा देवी के घर ग्राम पीपासर में विक्रमी सम्वत् 1508 भादो बदी अष्टमी के दिन अवतार लिया । सात वर्ष तक मौन रहकर बाल लीला का कार्य किया, 27 वर्ष तक गायों की सेवा करने व चराने का पवित्र कार्य किया । सम्वत् 1540 चैत सुदी नवमी को पिता श्री लोहट जी पंवार एवं सम्वत् 1540 भादवा की पूर्णिमा को माता हंसा देवी द्वारा निर्वाण को प्राप्त होने पर संसारिक सुख एंव एश्वर्य के संसाधनों को त्यागकर विक्रमी सम्वत् 1542 में समराथल धोरे पर हरी कंकेड़ी के नीचे आसन लगाया तथा 51 वर्ष तक अमृतमयी शब्द वाणी का कथन किया तथा विभिन्न प्रकार के चमत्कार दिखाकर जड़ बुद्धि लोगों को धर्म मार्ग पर लगाकर उनका उद्धार किया । देश विदेशों में भ्रमण करते हुए लोगों को बिश्नोई पंथ का उपदेश दिया तथा विक्रमी सम्वत् 1593 इस्वी मिंगसर बदी नवमी को अंतर्ध्यान हो गए ।
सम्वत् 1507 ईस्वी में जिस प्रकार से विष्णु भगवान ने लोहट जी पंवार को साधु के वेष में दु्रणपुर (छापर) के जंगल में दर्शन देकर भिक्षा मांगी तथा बिना ब्याई बच्छी का दुध पिया तथा वरदान दिया था एवं गोवलबास में माता हंसा देवी को साधु वेष में दर्शन दिया, भिक्षा प्राप्त की तथा पुत्र वरदान दिया था । इसी प्रकार अमृतमयी शब्द वाणी का उपदेश करने के दौरान जाम्भो जी ने विक्रमी सम्वत 1580 (लगभग) के वैशाख माह में दोपहर के समय वर्तमान राजस्थान राज्य के चुरू जिला के गांव मोलीसर बड़ा की कांकड़ में साधु वेष में आकर हुक्माराम जाट पुत्र श्री बुद्धाराम सिहाग को हरी कंकेडी के नीचे दर्शन दिये थे । उस समय हुक्माराम खेत में बकरियां चरा रहा था तथा लोटड़ी में पानी खत्म हो जाने के कारण प्यास से व्याकुल था । साधु बाबा ने हुक्काराम से पानी पीने की ईच्छा व्यक्त की तो उसने कहां - महाराज मेरी लोटड़ी में पानी खत्म हो चुका है - मैं खुद प्यास के मारे व्याकुल हो रहा हॅू, तो आपको पानी कहां से पिलाऊॅ । तब साधु बाबा ने जिद करके कहां कि तेरी लोटड़ी पानी से भरी हुई है - तूं मुझे पानी पिलाना नहीं चाहता । साधु बाबा द्वारा बार-बार जिद करने पर हुक्माराम ने जैसे ही लोटड़ी का ढक्कन खोला तो देखता है कि लोटड़ी पूर्ण रूप से पानी से भरी हुई है, यह देखकर उसे बड़ा अचम्भा हुआ । उसने लोटड़ी से साधु बाबा को पानी पिलाया व बाद में स्वयं पानी पिया । फिर साधु बाबा ने कहां कि मुझे अपनी बकरी का दुध पिलाओं तो हुक्माराम ने निवेदन किया की महाराज इन बकरियों में कोई भी ऐसी बकरी नहीं है जो दूध देती है, सारी बकरियां बाखड़ी है परन्तु साधु बाबा के जिद करने पर जैसे ही हुक्माराम लोटड़ी लेकर बकरी के पास गया तो उसके स्थनों मे से दूध आने लगा । हुक्माराम ने लोटड़ी भरकर साधु बाबा को दूध पिलाया तथा चरणों में दण्डवत प्रणाम करके बोला कि साधु बाबा आप अपना परिचय बतायें मुझे तो आप साधु के वेष में साक्षात भगवान का अवतार मालूम पड़ते है । तब साधु बाबा ने कहां कि मेरा नाम जाम्भों जी है । यह कहकर जाम्भों जी ने हुक्माराम को कुछ भूमि जम्भेश्वर बणी के नाम से छोड़ने को कहां तथा यह भी कहां कि इस भूमि पर खेती मत करना साथ ही हुक्माराम को वरदान मांगने को कहां।
हुक्माराम ने जाम्भों जी से निवेदन किया की हमारे यहां पानी की बहुत कमी रहती है, कृपया इस कमी को दूर करने की विधि बताये । तब जाम्भों जी ने कहा की जब बरसात के दिनों में भी बरसात न हो तो आपके परिवार का शुद्ध व्यक्ति नंगे पांव, नंगे बदन (एक अंगोछा पहनकर) होकर एक हाथ में कच्चा घड़ा (हांड़ी) एवं दूसरे हाथ में झोली ले लेना पूरे गांव में फेरी लगाकर भिक्षा एकत्रित करना ।
हुक्माराम मन ही मन खुश हुआ तथा गांव में जाकर आपबीती घटना गांव वालों को सुनाई, जाम्भों जी के बताये समयानुसार हुक्माराम ने गांव से भिक्षा एकत्रित करके जम्भेश्वर बणी में लाकर भोग लगाया तथा बाकला जानवरों को डाला तो बहुत जोरदार बरसात हुई तब लोगों को पक्का विश्वास हो गया । तभी से उन लोगों ने उस जगह को बणी (ओरण) के रूप में छोड़ दिया तथा पूजा अर्चना करने लगे एवं जब भी किसी व्यक्ति को कोई कष्ट होता है तो जाम्भों जी की ओट लेकर ध्वजा, नारियल, प्रसाद चढाते है तो उनका कष्ट दूर हो जाता है । इस स्थान पर गोपाल राम पुत्र डूंगरराम जाट सिहाग गांव मोलीसर बड़ा ने सम्वत 2011 में लंगड़ा ऊॅट ठीक हो जाने पर चूने की घट निकालकर छोटा सा मन्दिर निर्माण करवाया था जो आज भी विद्मान है । इस मन्दिर का जीर्णोधार दिनांक 24.12.2009 को किया गया ।
गांव के लोगों द्वारा बताये अनुसार जाम्भों जी ने बहुत से दुःखी लोगो के दुःखों को दूर किया है । वर्तमान समय में इस पवित्र स्थान पर पिछले 50 वर्षो से श्री उमाराम सिहाग पुत्र श्री बिशनाराम जाट उम्र 72 वर्ष साकिन मोलीसर बड़ा अपने पूर्वजो की प्रेरणा से नित्य प्रति धूप, अगरबत्ती आदि करके पूजा करते आ रहे है तथा प्रत्येक वर्ष भादवा की चैदस बदी को इनके द्वारा जागरण लगाया जाता है । पूर्व में इनके पूर्वज सेवा पूजा करते आ रहे है । जाम्भों जी के इस पवित्र स्थल को बनाये रखा है । इस पवित्र स्थल पर श्री उमाराम सिहाग ने चार वर्ष पूर्व एक बहुत बड़ा पानी का कुण्ड बनाया था जो बरसात के पानी से आज भी भरा रहता है ।
हमारे समाज के साधु संतो को कभी कुछ ही वर्ष पूर्व इस पवित्र तीर्थ स्थल के बारे में जानकारी मिली है । स्वामी कृपाचार्य जी महाराज ने जनवरी 2007 में इस पवित्र भूमि पर 21 दिन तक नंगे बदन रहकर तपस्या की थी । उसी समय के दौरान श्री उमाराम सिहाग ने गांव के सहयोग से इस स्थान पर एक झोपड़े का निर्माण किया उसके बाद स्वामी कृपाचार्य जी महाराज के प्रयास एवं आस-पास के गांव के लोगों के सहयोग से श्री गुरू जम्भेश्वर भगवान के तीन विशाल जागरण लगाये जा चुके है ।
लोगों द्वारा आग्रह करने पर 10 अगस्त, 2008 को स्वामी कृपाचार्य जी महाराज ने इस पवित्र स्थल पर विशाल जागरण का आयोजन किया जिसमें बाहर से तथा आस-पास के गांवों से काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया । इस आयोजन में स्वामी रामानन्द जी महाराज जाम्भा के श्री महंत स्वामी भजनदास जी, स्वामी भागीरथदास शास्त्री जी महारा, स्वामी चैन प्रकाश जी महाराज व अन्य कई संतों ने भाग लिया । अगले दिन दिनांक 11.08.2008 को विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें राजस्थान सरकार के तत्कालीन मंत्री माननीय राजेन्द्र सिंह राठौड़, सांसद श्री रामसिंह कस्वां, जिला प्रमुख श्रीमती कमला देवी चोधरी , प्रधान श्री हरलाल सहारण आदि पधारे । यज्ञ के बाद भी गुरू जम्भेश्वर भगवान के मन्दिर का शिलान्यास किया गया ।
स्वामी कृपाचार्य जी महाराज के अथक प्रयास के दान राशी एकत्रित करके इस स्थान पर चार बीघा जमीन और खरीद की जाकर दिनांक 12.12.2008 से स्वामी कृपाचार्य जी महाराज द्वारा धर्मशाला व संत आश्रम का शिलान्यास कर निर्माण कार्य शुरू करवाया गया है ।
श्री गुरू जम्भेश्वर बणी धाम में आज दिनांक तक धर्मशाला के छः कमरे, विद्युत कनेक्शन, ट्यूबवेल, चुग्गाघर का निमार्ण कार्य पूर्ण हो चुका है । संतों के लिए एक कुटिया का निर्माण कार्य प्रगति पर है । भक्त मन्दिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है जिसके नीचे की एक मंजिल का कार्य पूर्ण हो चुका है तथा दुसरी मंजिल के निर्माण का कार्य प्रगति पर है ।
इस पवित्र स्थल पर विद्युत कनेक्शन का कार्य दानदाता श्री सुभाष विश्नोई पुत्र श्री महीराम गोदारा निवासी चक 3एल.एन.पी. श्रीगंगानगर द्वारा 65000/-रू. का दान देकर करवाया गया । ट्यूबवैल का निर्माण दानदाता श्री ओम प्रकाश डेलू पुत्र श्री इन्द्रजीत विश्नोई निवासी सुखचेन तहसील अबोहर जिला फिरोजपुर (पंजाब) द्वारा 85000/-रू. दान देकर करवाया गया एंव चुग्गा घर का निर्माण दानदाता श्री भगवाना राम खीचड़ पुत्र श्री छतुराम जाट निवासी सूरतपुरा जिला चुरू द्वारा 56500/-रू. देकर करवाया गया ।
श्री गुरू जम्भेश्वर बणी धाम के पुराने छोटे मन्दिर में दिनांक 26.01.2009 वार सोमवार तद्नुसार विक्रमी संवत 2065 माघ मास कृष्ण पक्ष की सोमवती अमावश्या के दिन प्रातः काल की शुभ बेला में श्री हुक्माराम जाट के वंशज श्री रामचंद्र सिहाग के हाथों से अखण्ड ज्योति प्रजवल्लित की गयी । इस मन्दिर में प्रातः ब्रह्म मूहूर्त में भगवान की मंगल आरती, सूर्योदय होने पर शुद्ध देशी घी, खोपरा द्वारा नित्य प्रति श्री गुरू जम्भेश्वर भगवान की अमृतमयी शब्दवाणी के पाठ के साथ दिनांक 13.12.2008 वार शनिवार तद्नुसार विक्रमी संवत 2065 पौष माह कृष्ण पक्ष की एकम तिथि से लगातार नित्य प्रति पर्यावरण की शुद्धि हेतु हवन किया जाता है । दिन में आस-पास के गांवों से माता-बहिनें आकर यहां भजन कीर्तन करती है । सांय काल की संध्या बेला के समय संध्या आरती, भजन साखी आदि का गान किया जाता है। इस प्रकार से यह अध्यात्मिक दृष्टि से यह अति उत्तम स्थान है, यहां पर बैठकर भजन कीर्तन करने से आत्मा को शांति मिलती है ।
कथा वाचक स्वामी कृपाचार्य जी महाराज द्वारा दिनांक 11.04.2009 से 18.04.2009 तक यहां श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का विशाल आयोजन किया गया । जिसमें कथा भवन हेतु हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के दूर दराज के गांवों से एंव आसपास के गांवों से बहुत बड़ी संख्या में श्रदालु भक्तों ने पहुंचकर अपने जीवन को धन्य बनाया । सतसंग का श्रवण कर स्वामी जी की बातों को सुनकर काफी संख्या में लोगों ने अपने जीवन में आई बुराईयों का त्याग करने का संकल्प लिया । दिनांक 18 जून, 2009 से 30 जून, 2009 तक बणी धाम के आसपास के तेरह गावों में स्वामी कृपाचार्य जी महाराज ने नशा मुक्ति एवं सामाजिक कुरूतियों के निवारण का महा अभियान चलाया । जिसके तहत रात्रि में सतसंग प्रातः काल हवन एवं प्रवचन का कार्यक्रम रखा, स्वामी जी के प्रवचनों से प्रभावित होकर प्रत्येक गांव में सैंकड़ों महिलाओं, पुरूषों एवं बच्चों ने नशा मुक्त जीवन जीने का संकल्प पत्र भरकर स्वामी जी को प्रस्तुत किया तथा भविष्य में कभी नशा नहीं करने की शपथ ग्रहण की ।
बणी धाम में अगस्त 2009 से गौशाला का संचालन शुरू किया गया वर्तमान में यहां बहुत सी गायों व बछडों की सेवा का कार्य किया जाता है । भविष्य में यह गौशाला सबसे भव्य और बड़ी गौशाला में शामिल हो यह स्वामी जी की तमन्ना है।
आगामी दिनांक 25 दिसम्बर 2009 से एक जनवरी 2010 तक यहां श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का विशाल आयोजन किया गया । कथा वाचन समाज के युवा, ओजस्वी वाणी के धनी, भागवत रस रसिक स्वामी कृपाचार्य जी महाराज के द्वारा किया गया । इस कथा के मुख्य यजमान मैसर्स - देवेन्द्र कन्सट्रक्शन कम्पनी, ए.ए.क्लास गर्वनमन्ट कान्टेक्टर श्री देवेन्द्र जी बूडिया निवासी - गुडा विश्नोईयान जोधपुर थे । इस अवसर पर सम्पूर्ण राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली आदि से और स्थानीय नागरिक हजारों की संख्या में कथा सुनने पहुचे थे ।
स्वामी जी के पावन सानिध्य में आज इस स्थान के निरन्तर विकास के लिए भक्तगण श्री शंकरलाल भादु सरपंच कुदसू बद्री प्रसाद पंवार रावला अपनी पत्नी श्रीमती बिरमा देवी के साथ, एडवोकेट रामनिवास पूनियां जेगला, मोहनलाल जाणी जाखल आदि अपना पूर्ण कालिक सहयोग दे रहे और इस पवित्र धाम को उन्नत और विकसित करने के दिन रात प्रयासरत है । जल्द ही इस पवित्र स्थल में शिक्षा का एक बहुत बड़ा केन्द्र भी खोलने की स्वामी जी की योजना है। इस धाम का उल्लेख विश्नोई साहित्य की मुख्य पुस्तक ‘‘जाम्भा-पुराण’’ लेखक स्वामी श्री कृष्णानंद जी ‘आचार्य’ ऋषिकेष में ‘‘जाम्भोजी का भ्रमण’’ अध्याय में विस्तृत रूप से पृष्ठ सं. 403 से 405 में जाम्भोजी की बणी के नाम से किया है ।
सड़क मार्ग:- चुरू से रतनगढ़ वाली सड़क पर चुरू से 20 किलोमीटर एवं रतनगढ़ से 25 किलोमीटर पहले मुख्य सड़क पर सातड़ा गांव आता है, सातड़ा से मोलीसर जाने के लिए एक लिंग रोड़ दक्षिण दिशा में जाती है । इसी लिंग रोड़ पर दो किलोमीटर चलने पर श्री गुरू जम्भेश्वर बणी धाम, मोलीसर स्थित है ।
रेलमार्ग:- चुरू से रतनगढ़ जाने वाले मार्ग पर चुरू से 18 किलोमीटर आगे जुहारपुरा रेल्वें स्टेशन एवं बीकानेर से चुरू (160 किलोमीटर) आने वाली रेलगाड़ी से जुहारपुरा रेल्वें स्टेशन उतर कर सातड़ा जाने वाली सड़क पर दो किलोमीटर चलने पर यह पवित्र धाम आता है । दिनांक 13.12.2008 के बाद में स्वामी कृपाचार्य जी महाराज के आदेश से यहां नित्य प्रति जम्भेश्वर भगवान की अमृतमयी शब्द वाणी के पाठ के साथ यज्ञ किया जा रहा है जो भी श्रद्धालुजन भगवान का मुख्य भोजन घी, खोपरा आदि भेंट करना चाहे तो उनका भगवान के दरबार में स्वागत है ।
श्री जम्भेश्वर मंदिर नीमगाँव (हरदा,मध्यप्रदेश)
इतिहास - 19वी सदी के शुरूआत मैं जब राजस्थादन प्रदेश मैं वर्षा नही होने पर भिषण अकाल पड़ा तब वहाँ से लोंगो ने पलायन करके दूसरे राज्य मैं जाने लगें उस समय कुछ संख्या मैं बिश्नोई समुदाय के लोंग भी मध्य-प्रदेश के मालवा छेत्र हरदा जिले के अलग-अलग गाँव मैं आकर रहेने लगे.....फिर उन्होने यहा पर ज़मीदारो की बंजड़ ज़मीनो पर अपनी महनत से खेती (किसानी कार्य) प्रारम्भ किया ओर बिश्नोइओ द्रारा भगवान जंभोजी के मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ. सन् 1926 मैं श्री जम्भेश्वर मंदिर नीमगाँव का उद्घाटन अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के चतूर्थ अधिवेशन मैं मुख्यअतिथी महाराजा श्रीमान नंदलालजी थापन बिश्नोई (कांठ-मुरादाबाद) के हाथओं हुआ साथ ही अधिवेशन समारोह आयोजक के प्रधान लाबुजी पंवार बिश्नोई (चाँदनी वाले) व बलदेवजी गोदारा नीमगाँव थे. सन् 1976 मैं स्वर्गीय भजनलालजी बिश्नोई (पूर्व मुख्य मंत्री हरियाणा सरकार) के द्रारा भी मंदिर का अनावरन किया गया!
सन् 2000 मैं स्वर्गीय श्री रामसिंग जी बिश्नोई खोकर ( पूर्व मंत्री राजस्थायन सरकार) ने भी मंदिर मैं सभा करने के बाद मैं बिश्नोइओ के गाँवो का दोअरा किया एवं किसानो के लिए सहयता की माँग उठाई. सन् 2005 मैं महामहिम राज्यपाल डा. बलराम जाखड़ जी के हाथो मंदिर का स्वर्ण कलश इस्तापित किया गया. यह भ्व्य मंदिर सुन्दर वास्तुशिल्प एवं संगमरमर के पाषाण से बना है. ड़ा. आचार्य गोवर्धनराम जी (शिशा शास्त्री) हरिद्वार के सानिध्य मैं ओर मध्य प्रदेश सभा नीमगाँव द्वारा यहा पर प्रति बर्ष अगहन मेला (मिक्सर की अमावस) पर आयोजित होता है
सन् 2000 मैं स्वर्गीय श्री रामसिंग जी बिश्नोई खोकर ( पूर्व मंत्री राजस्थायन सरकार) ने भी मंदिर मैं सभा करने के बाद मैं बिश्नोइओ के गाँवो का दोअरा किया एवं किसानो के लिए सहयता की माँग उठाई. सन् 2005 मैं महामहिम राज्यपाल डा. बलराम जाखड़ जी के हाथो मंदिर का स्वर्ण कलश इस्तापित किया गया. यह भ्व्य मंदिर सुन्दर वास्तुशिल्प एवं संगमरमर के पाषाण से बना है. ड़ा. आचार्य गोवर्धनराम जी (शिशा शास्त्री) हरिद्वार के सानिध्य मैं ओर मध्य प्रदेश सभा नीमगाँव द्वारा यहा पर प्रति बर्ष अगहन मेला (मिक्सर की अमावस) पर आयोजित होता है
श्री गुरु जम्भेश्वर मन्दिर
गाँव - राजांवाली , तहसील - अबोहर (पंजाब)
अबोहर उपमंडल में ही बिश्नोई समाज का पावन धाम मेहराना धोरा अवस्थित है।अबोहर उपमंडल के लगभग 13 गाँवों में बिश्नोई बहुसंख्यक है और तकरीबन हर गाँव में गुरु महाराज के भव्य मन्दिर बने है ।
श्री गुरु जम्भेश्वर मन्दिर
मेहराना धोरा , अबोहर ( पंजाब )
श्री गुरु जम्भेश्वर मन्दिर
मेहराना धोरा , अबोहर ( पंजाब )
पंजाब के बिश्नोई बहुल गाँवों की आस्था एवम श्रद्धा का का प्रतीक है मेहराना धोरा ।सित्तोगुन्नो चोराहे से मलोट की तरफ जाने वाली सड़क पर लगभग 4 किलोमीटर चलने पर मेहराना धोरा रूपी पावन स्थल आता है। आज से लगभग 80 वर्ष पूर्व यह क्षेत्र अत्यंत वीरान और बियाबान था लगभग 30 बीघा का यह इलाका झाड़ झंखाड़ और पेड़ पोधो से ढका था आसपास के गाँवों के लोग दिन में भी यहाँ आने से कतराते थे ऐसे समय में राजस्थान की नोखा तहसील के जेगला गाँव से ब्रह्म्दास जी सिगड़ नामक संत इस स्थान पर आये और इस निर्जन स्थान पर एकांत में रहकर तपस्या करने लगे । आसपास के गाँवों के लोग तपस्यारत ब्रह्म्दास जी के दर्शन एवम भोजन पानी हेतु यहाँ आने लगे । ब्रह्म्दास जी यहाँ 30 वर्ष तक तपस्यारत रहे इस अवधि में भी कोई व्यक्ति रात्रि विश्राम हेतु यहाँ नही रुकता था ।
आज उसी स्थान पर गुरु महाराज का भव्य मन्दिर बना है । मन्दिर के पास ही ब्रह्म्दास जी की समाधि और वह गुफा है जहाँ उन्होंने तपस्या की थी । मन्दिर के पास ही झमकू देवी बा.उ.मा. विद्यालय संचालित है कुछ समय पूर्व तक इसका संचालन मन्दिर समिति ही करती थी ।मन्दिर की वर्तमान में कुल 15 बीघा (लगभग ) जमीन हैं जहाँ पेड़ पोधे लगे है । मुख्य द्वार के पास ही हिरण शिकार प्रकरण में शहीद हुए श्री हजारी राम जी मांझु की प्रतिमा स्थापित है। वर्तमान में यहाँ पूजनीय महंत मनोहर दास जी , श्री कालूराम जी एवम श्री प्रेमदास जी विराजमान है ।
श्री गुरु जम्भेश्वर मन्दिर खेजङली
श्री गुरु जम्भेश्वर मन्दिर खेजङली :-
स्थापत्य कला का प्रतिक व 363 शहीदो की धरा पर बना ये मन्दिर अभी निर्माणाधीन है। लेकिन ईस मन्दिर को ईतनी खुबशुरती से बनाया गया है कि वो आप कल्पना नहीँ कर सकते। मन्दिर के अन्दर खेजङली बलिदान का सचित्र वर्णन किया गया है। और गुरु जम्भेश्वर भगवान द्वारा प्रतिपादित 120 शब्दो को भी पत्थरो पर ऊकेरा गया है। शहीदो कि धरा पर बना ये मन्दिर शीघ्र ही पुरा बनकर त्यार हो जायेगा।