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मंगलाचरण 

जब एक बिशनोई दूसरे बिशनोई से मिले तो उसे ‘‘ नमन प्रणाम " कहकर अभिवादन करे तथा दूसरे बिशनोई को उत्तर में ‘गुरू  जाम्भोजी को,  विष्णु  को कहना चाहिए।  यह हमारे गुरू जी के द्वारा  आरम्भ की गई परम्परा हैं जिसका हमें पालन करना चाहिए। अन्य लोगां से चाहे राम - राम, जय राम मी की, नमस्ते, नमस्कार, सलाम, वेल्कम या गुड मोर्निंग/इवनिंग कहें। 

  गुरू महाराज जब अन्तर्ध्यान होने लगे तब भगतों-सन्तों ने पूछा गुरूदेव अब आपके दर्शन हमें कहॉं होंगे तब गुरूदेव नें कहां हवन में तथा जोत में। अतः हम बिशनोईजन हवन पर या जोत के सामने नंगे सिर न जायें, यह हामारी सभ्यता एवं संस्कृति के विपरीत होने के अतिरीक्त गुरू जी का अपमान भी है। हमें अपने सिर पर पगडी, साफा, टोपी, अंगोछा या रूमाल रखकर हवन पर बैठना या जोत के सामने जाना चाहिए। महिलाओं को अपने ओढने, चून्दडी, दुपट्टा या साडी सिर पर रखनी चाहिए। बच्चों के सिर पर रूमाल या टोपी रखनी चाहिए।

 प्रायः लेखक गुरू जी का नाम केवल जाम्भोजी या  जम्भेश्वर लिखते हैं जो उचित नहीं है। अनके नाम से पूर्व आदर सुचक शब्द ‘‘गुरू’’ अवष्य लिखें। सिख लोग अपने गुरू की संख्या के साथ पादषाही जैसे पांचवी पादषाही या नाम से पूर्व गुरू शब्द का प्रयोग करते हैं।

  जितने बिशनोई मन्दिर हैं उनके नाम से पहले श्री शब्द प्रयोग करें जो सम्मान सूचक है जैसे श्री बिशनोई मन्दिर हिसार/अबोहर आदि।

 छोटे बच्चों में संस्कार डालें ताकि वे बचपन से ही उपरोक्त संस्कारों को अपना सकें। यह माता-पिता का दायित्व है। 


-: नवण-प्रणाम का अर्थ:-

हम हमारी जानकारी के अनुसार वर्णन करने की कोशिश करेंगे और आशा है कि यह सहायक होगी।नवण/निवण स्थानीय राजस्थानी शब्द है,नमन (झुक कर प्रणाम) नम्रता के साथ, जैस कि हिन्दी में नमस्कार इसी का भाग है।इसलिए नवण/निवण करने से आश्य आदरपूर्वकअंहकार शुन्य भाव से प्रणाम करने से है।दूसरे राजस्थानी समुदायों में इसे निवणकरां सा कहते है।आपने देखा होगा कि कुछ लोग आदरपूर्वक अपने हाथ मिलाते है या जोङकर नवण-प्रणाम करते है। वास्तविकता में यह शारिरीकआदर का शब्द है।गुरु महाराज ने इस शब्द का प्रयोग कई शब्दों में किया है जैसे कि शब्द 23 व 30 वें शब्द में "निवीयेनवणी, खविए खवणी" से अभिप्राय यदि इस संसार में नमन करने योग्य व्यक्ति से नमन करते हुए अर्थात निरभिमानी होते हुए क्षमा करने योग्यजगह पर क्षमाशील होते"पवणा पाणी नवण करंतो" परमपिता परमेश्वर सबमें स्वामी,पवनदेवता, जलदेवता चन्द्रदेवता आदि है।जीवनयापन करते हुए तूनेँ इनको कभी नमन नहीं किया।क्योंकि जो देता है वही देवता है।ये तो सभी हर क्षण हमें अपनी ऊर्जा शक्ति देते ही रहते है इसलिएये सभी जीवनदाता देव नमन करने
योग्य हैं।शब्द 5.नमो नारायण- हमें भगवान को नमन(नवण) करना चाहिए।शब्द 98. "जाकै बहुती नवणी बहुतीँ खवणी"गुरु जम्भदेव कहते है किअहंकार शुन्य जो व्यक्ति है तो उसके जीवन में अत्यधिक नम्रता आ जाती है।क्षमाशीलभी उनमें स्वाभाविक हो जाती है।गुरुजी हमेशा ने सादा व आदर्श जीवन को महत्व दिया लेकिन दुःखद बात तो यह है कि बिश्नोई समाज के अधिकतर लोग दूसरे राहों पर चल रहे हैँ।

-:नवण-प्रणाम का प्रतिउत्तर:-

अगर कोई कहे- "नवण-प्रणाम तो हम उसे कहते है,"जाम्भोजी ने विष्णुजी ने" हम इसके माध्यम से गुरु जाम्भोजी व विष्णुजी को याद करते है। साधारणतया हम भोजनका पहला निवाला मुँह में लेने से पूर्वविष्णुजी ने अर्पण कहते हैं। इस माध्यम से हमारा भोजन गुरु जाम्भोजी व विष्णुजी को भोग होता हैं। यह ध्यानयोग्य बातहै कि हम हमेशा भगवान को खाना ऑफर करते है और धन्यवाद कहतेहैं। और हम नवण-प्रणाम उपयोग गोर करें तो उसके जवाब में हमें दो शब्द भगवान केही लेने पङते हैं।हमारे समाज में ये कुछ अच्छे माध्यम है जिससे हम एक दिन में साधारणतया कई बार गुरु जाम्भोजी व विष्णुजी का नाम होते है।कई लोग हेल्लो ,हाय भी कहते है लेकिन यह शब्द हमें attractive तो लगता है पर इससे कुछप्राप्ति नहीं, इससे अच्छा है हम हमेशा नवण-प्रणाम ही कहे ताकि भगवान का स्मरण हो सके।
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