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 :- अथ बालक मन्त्र: :-
  ओउम शब्द गुरुदेव निरंजन | ता इच्छा से भये अंजन |
हर के हाथ पिता के पिष्ट | विष्णु माया उपजी सिष्ट |
सप्तधार को उपजो पिंड | नौ दस मास बालौ रह्यो अधौर कुंड |
अरध मुख था उरध चरण हुतास | हरि कृपा से भया खलास |
जल से नहाया त्याग्या मल | विष्णु नाम सदा निरमल |
विष्णु मन्त्र कान जल छुआ | श्री जम्भेश्वर की कृपा से बिश्नोई हुआ ||

  ओउम शब्द गुरुदेव निरंजन | ता इच्छा से भये अंजन |
हर के हाथ पिता के पिष्ट | विष्णु माया उपजी सिष्ट |
सप्तधार को उपजो पिंड | नौ दस मास बालौ रह्यो अधौर कुंड |
अरध मुख था उरध चरण हुतास | हरि कृपा से भया खलास |
जल से नहाया त्याग्या मल | विष्णु नाम सदा निरमल |
विष्णु मन्त्र कान जल छुआ | श्री जम्भेश्वर की कृपा से बिश्नोई हुआ ||

                       गृहस्थ  दीक्षा मन्त्र:   
   || चौपाई ||

लोहा पांगलजी पूछते  हैं 
ओंकार का भेद बताओ | शब्द सूरत दोनों समझाओं ||१||
कहाँ से आये तुम गुरुराई | कौन पिता तव  कौन हैं माई ||२||    
                   दोहा  - शब्द सूरत से भेद को ,म्हाने दो समझाय |
                              जाके समझे से सदा , सुख में रहूँ समाय ||३||

तब गुरु जम्भेश्वर भगवान ने कहा -
गृहस्थ  दीक्षा मन्त्र:
"ओउम शब्द गुरु सुरत चेला, पाँच तत्व में रहे अकेला।
सहजे जोगी सुन में वास, पाँच तत्व में लियो प्रकाश।।
ना मेरे भाई, ना मेरे बाप, अलग निरंजन आप ही आप।
गंगा जमुना बहे सरस्वती, कोई- कोई न्हावे विरला जती।।
तारक मंत्र पार गिराय, गुरु बताओ निश्चय नाम।
जो कोई सुमिरै, उतरे पार, बहुरि न आवे मैली धार।। "

         ||संत दीक्षा मन्त्र: ||              
स्वामी रेड़ाजी पूछते हैं -

                                || चौपाई ||

अब मुझको प्रभु जप बताओ | मेरे सब संदेह मिटाओ ||१||
जैसा हो तैसा कहो स्वामी | विघ्न हरण मंगलमय  नामी ||२||
ओउम शब्द का कर उपदेशा | काटो जन्म मरण मम क्लेशा ||३||
हरो पाप मम शीघ्र विधाता , जम्भेश्वर गुरु जग विख्याता||४||

दोहा -  मूल अविधा दूर कर  ,मेटो सब जंजाल
            अविनाशी नाम सुने कर , हरो हिये  के साल ||५||


तब गुरु जम्भेश्वर भगवन ने कहा -  संत दीक्षा मन्त्र: 
ओउम शब्द सोहं आप | अन्तर जपै अजप्या जाप ||
सत्य शब्द लंधे घाट | बहुरि न आवे योनी वाट ||
परसे विष्णु अमृत रस पीवै | जरा न व्यापै युग युग जीवै ||
विष्णु मन्त्र है प्राणाधार | जो कोई जपै सो उतरे पार ||
ओउम विष्णु सोहं विष्णु | तत्व स्वरूपी तारक विष्णु ||



|| ध्यान मन्त्र: ||
ज्ञाने तूं ध्याने तूं सीले सबदे तूं आचारे विचारे तूं | गिगन गहिरे तूं चवदा भवने तूं त्यौह त्रिलोक तूं | नादे वेदे तूं जंबू दीपे तूं सपत पताले तूं गाजे बाजे तूं | दामोदर तूं कृष्ण तूं बाहर तूं  भीतर तूं सरब निंरतर तूं | आदि तूं जगादि तूं ,निंरजन निराकार जोति सरुपी | धणी थै जिसी धणाय  करी , व्रख जिसों छाया करी | पुरुष थै जिसों महरि करी , आई बलाय दफै करी | बुर वालियों बुर चिंतियो तिसकै चक मारी | त्रिलोकीनाथ भलौ हुवै स करी ||


 :-   वेदों के मन्त्र :-
ओउम विश्वानिदेव सवितदुरितानी परासुव यदभद्र तन्न स्वाहा आसुव ॥१|| ओउम शन्नों मित्र: शं वरुण: शन्नो भवत्वर्यमा | शन्न इन्द्रो ब्रहस्पति: शन्नो विष्णुरुरुक्रमः ||२|| ओउम नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि| त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि ||३|| ऋतं वदिष्यामि | सत्यं वदिष्यामि | तन्मामवतु तद्वक्तारमवतु | अवतु मामवतु वक्तारम |ओउम यथे मां वाचं कल्याणी  मावदानि जनेभ्य: ब्रह्मा राजन्यभ्यां & शूद्राय चार्याय च  चारणाय ||३||ओउम वसोः पवित्रमसि शतधारं ,वसो पवित्रमसि सहस्रधारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः, पवित्रेण शतधारेणसुप्वा, कामधुक्षः स्वाहा ।|४|| ओउम  विश्वायु: सा विश्वकर्मा सा विश्वधाया: इन्द्रस्यत्त्वा भागं & सोमेना तन्चिम विष्नो हव्यं & रक्ष ||५|| 

 :- ऋग्वेद मन्त्र: :-
           अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवं रत्वीजम |होतारं रत्नधातमम ||१|| अग्नि: पुर्वेर्भीरषीभीरी:यो नूतनैरु |स देवानेह वक्षती ||२||अग्निना रयिमश्नवत पोषमेव दिवे-दिवे |यशसं वीरवत्तमम ||३||अग्ने यं यज्ञमध्वरम विश्वत: परिभूरसि |स इद्देवेषु गच्छति ||४||अग्निर्होता कविक्रतु: सत्यश्चित्रश्रवस्तम: |देवो देवेभिरा गमत ||५||यदग्न दाशुषे तवमग्न भद्रं करिष्यसि |तवेत तत सत्यमण्गिर: ||६||उप तवाग्ने दिवे-दिवे दोषावस्तर्धिया वयं |नमो भरन्त एमसि ||७||राजन्त्मध्वराणाम गोपां रतस्य दिदिवं |वर्धमानंस्वे दमे ||८||स न: पितवे सूनवे अग्ने सूपायनो भव |सचस्वा न: सवस्तये |

 :-  गायत्री मन्त्र :-                       ॐ र्भूभुवःस्वःतत्सवितुर्वरेण्यं,भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो न:प्रचोदयात्, स्वाहा । 

:- तिलक लगाने के  मन्त्र: :-


तिलक-तिलक तीन लोक में विष्णु नाम तत्सार |ध्रुव प्रहलादे मस्तक चढ़े शोभा अंत न पार |चित्रकूट के घाट पर भई सन्तन की भीड़ |तुलसीदास चन्दन घीसे तिलक देत रघुवीर |ओउम शन्नो देवीरभीष्ट्ये आपोभवन्तु|पीतये शंयोरभिश्र्वंतु न: || यजुर्वेद|




:- पाहल लेने का मन्त्र:
 :-
अकाल मृत्यु हरण सर्व व्याधि विनाशनम: |विष्णो: पादोदकं पीत्वा , पुनर्जन्म न विद्यते ||
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