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तारोजी भक्त द्वारा जीव रक्षा :
तारोजी भक्त सदा ही संध्या, वंदन, स्नान, ध्यान एवं हवन करके ही भोजन करते थे। सदा ही जिनके यहां अतिथि सुभ्यागत का आदर- सत्कार होता था। गुरू जाम्बोजी में पूर्ण श्रद्धा-भक्ति थी। उन्नतीस नियमों का पालन करने में सदा ही तत्पर रहते थे। जीवों पर दया भाव ही अपना परम धर्म समझते थे । वे तो एक सच्चे बिश्नोई ही थे।
उस समय वि.सं. उन्नीस सौ के लगभग की बात है, जब बिश्नोई लोग राजस्थ

ान की मरूभूमि से उठकर ''जहां बूठो तहां बाहिये'' की नीति अपनाते हुए पंजाब में जाकर बस गये थे। इधर तो राजपूतों का राज्य था किन्तु मरूभूमि से बाहर वर्तमान हरियाणा पंजाब में अंग्रेजों का राज था। अंग्रेज तथा मुसलमान इन दोनों से बिश्नोई लोग पीडि़त थे। धर्म की रक्षा करने में कठिनता हो रही थी परन्तु फिर भी अपने धर्म पर डटे हुऐ थ।
राजपूतानें के लोग तो बिश्नोईयों के रहन सहन रीति रीवाज धर्म कर्म के बारे में जानते थे किन्तु अंग्रेज लोग राजमद में अंधे हो गये थे। वे कब किसी हिन्दुस्तानी की परवाह करने वाले थे। जो भी मन में आया वही अत्याचार प्रजा पर करते थे।
इधर हांसी हिसार के आस पास बिश्नोईयों की बस्ती थी। वहीं पर शीशवाल गांव में तारोजी राहड़ भी रहा करते थे। एक समय तारोजी अपने खेत में कार्य कर रहे थे। उसी समय ही उनके आस पास हरिणों की टोली निर्भय होकर विचरण कर रही थी। पशु भी तो प्रेम भाव को पहचानते है। हिंसक तथा अहिंसक का भेदभाव समझते है जहां शिकारी लोग बसते है वहां हरिण पलायन कर के जहां दयावान लोग बसते है वहां आकर विचरण करने लग जाते है। ऐसा ही दृश्य वहां तारो जी के आस पास का था।
एक बार हरिणों का शिकार करने के लिए अंग्रेज अफसर इधर उधर भटकता हुआ बिश्नोईयों के गांव शीशवाल में पहुंच गया। क्योंकि अन्यत्र तो शिकार मिलनी दुर्लभ थी वे दुष्ट लोग पहले ही खा चुके थे। कुछ बचे हुओं इधर बिश्नोईयों की शरण ग्रहण की थी, इसलिए वह अंग्रेज अफसर भी उन हरिणों के पीछे पीछे शीशवाल तक पहुंच गया था। बिश्नोईयों के गांवो में निर्भय होकर विचरण करते हुए उन्होनें देखा तो आश्चर्यचकित हो गया और तुरंत बंदूक भर के हरिण के उपर गोली चला दी, वह गोली हरिण को नहीं लगी।
उसी समय ही तारोंजी अपने खेत में कार्य कर रहे है, ज्योंहि बंदूक की आवाज सुनी त्योंहि आगे बढ कर झट उस अफसर को रोक दिया। कहने लगे रूक जाओ, फिर गोली नहीं चलाना। वह तनिक रूक कर तारे को डांटते हुए कहने लगा- दूर हट जाओ! मेरा शिकार जा रहा है, यदि उसमें विघ्न डाला तो मैं तुझे भी उसी गोली का शिकार बना दूंगा।
तारे ने मृत्यु को सामने खड़ी देखी थी। फिर भी कुछ भी परवाह नहीं की और पुन: उस अंग्रेज को रोकते हुए अति निकट पहुंच गये। वह तो मदान्ध था। किसी भारतीय को क्या समझता था।
झट से दूसरी गोली चला दी ज्योंहि उस अफसर ने घोड़ा दबाया, बंदूक की आवाज गूंजायमान हुई त्यूंहि तारे भक्त ने अपनी लाठी का प्रयोग अंग्रेज उपर कर दिया। लाठी की लगते ही अंग्रेज धरणी पर गिर गया। हरिण तो वन में भाग चुका था। हरिण की रक्षा हो गयी। अपने सामने हत्यारे से बचा लिया और एक ही चोट से उस अफसर को धूल चटा दी।
वह तो वहां से चुपके से उठ कर अपने घोड़े पर सवार होकर वहां से भागा और हांसी जाकर ही दम लिया। तारो अपने खेत में अपना कार्य करने लग गया। उस अफसर ने हांसी जाकर तुरंत ही तारे की गिरफतारी का वारंट जारी करवा दिया। दूसरे दिन ही पुलिस वारंट एवं हथकड़ी लेकर शीशवाल में तारे के पास पहुंच गयी। और बंदी बना कर हांसी जेल में डाल दिया। न तो कोई फरियाद करने वाला ही था और नहीं कोई सुनने वाला ही था जेल में पड़े हुए भगवान गुरू जाम्भोजी का ही स्मरण करते रहे।
जब भोजन का समय आया, तब नौकर भोजन लेकर उपस्थित हुआ तब तारोजी ने भोजन करने से मना कर दिया। जेल अफसर ने आकर पूछा- क्या बात है? आप भोजन नहीं करेंगे? तारो जी ने कहा- मैं गुरू जाम्भोजी का शिष्य बिश्नोई हूं। प्रथम तो स्नान फिर संध्या, उसके बाद हवन करके फिर भोजन करूंगा। जब तक ये नियम नहीं निभेंगे, तब तक मैं भोजन नहीं करूंगा। जेल अधीक्षक ने समझाया कि इस प्रकार से तो तुम भूख मर जाओगे। तुम्हें पता है कि तुम्हारे जुर्म के अनुसार तुम्हें सात महीने की जेल हो गयी है यदि जिंदा रहना है तो खाना ही होगा। अन्यथा सात महीनें भूखें तो जीवित नहीं रह सकोगे।
सात महीने ही क्यों? चाहे सात साल भी मुझे जेल में रहना पड़े किन्तु मैं अपने धर्म को नहीं तोड़ सकता। यदि आप मुझे भोजन करवाना चाहते है तो मुझे मेरे धर्म कर्म पूर्णतया निभाने दीजिये जेल अधिकारी ने अपनी असमर्थता प्रगट कर दी तो तारोजी ने भी अपनी असमर्थता प्रगट कर दी। इस प्रकार से तारोजी ने सात दिन रात भूखे ही जेल में रह कर व्यतीत कर दिये। अधिकारियों ने सजग होकर पहरा देकर अच्छी प्रकार से जांचा और परखा था। सातवें दिन गुरू महाराज की कृपा से जेल के ताले खुल गये और सातवें दिन बाहर आ गये। धर्मो रक्षति रक्षित:'' आप धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा।
अंग्रेज अफसरों को भी तारोजी की दृढता के सामने झुकना पड़ा। और कभी भी बिश्नोईयों के गांवो में शिकार खेलना छोड़ दिया। अंग्रेज सरकार ने अनेको प्रमाण पत्र भी लिख कर दिया था जो अब भी मौजूद है। यह सभी कुछ बिश्नोईयों की धर्म परायणता औ जीव रक्षा से ही संभव हुआ था।

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