“बिश्नोई पहचान”
श्री जंभराय के राज की, बड़ी अपूरब बात।
नर-नारी फूलै फलै, हमेशा गुरु का साथ॥
वैस बदलकर रात में, पुर घुमेँ भू-पाल।
दुखिया जन का कष्ट हर, सुध लेते तत्काल॥
सभी वयस्क संस्कारवान, पाप करे न कोय।
बरसे नित जंभकृपा, अन्नधन, लक्ष्मी की कमी न होय।
‘वन’जीवों के रक्षक बने, उन्हें मारे न कोय।
चारों तरफ हरियाली दिखे, बरसात समय पर होय॥
जांभोजी के धाम में, सज्जन करे निवास।
गोपालन, कृषि, व्यवसाय-वृत्ति, ईश अटल विश्वास।
व्यसनोँ में नहीं वासता, जो सद्गुण की खान।
भारत भू पर भद्र-जन “बिश्नोई” पहचान॥