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जांभोजी से प्रभावित लोग :

जोधपुर के राव सांतल, अजमेर के सूबेदार मल्लू खां,नैतसी सोलंकी, राठौड़ों के राजपुरोहित मुलराजजी, द्रोणपुर के राठौड़ राव बीदा, नागौर का रामा सुराणा, उतरप्रदेश नगीना के सेठ कुलचंदराय अग्रवाल, गोठ मांगलोद के उदोजी नैण, जैसलमेर के राव जैतसी( जिन्होनें अपने जैतसमंद तालाब की प्रतिष्ठा जाम्भोजी द्वारा करवाई थी और अपने राज्य में बिश्नोईयों को बसाने की जाम्भोजी से प्रार्थना की तो जाम्भोजी ने पाण्डु और लक्ष्मण गोदारा को अपनी अमानत समझकार सौंपा, जो खरींगा गांव में बसे थे) नागौर के सूबेदार मोहम्मद खां नागौरी, दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी को जाम्भोजी ने स्वयं दिल्ली जाकर चेताया था, सबद संख्या 27:15,18) कनार्टक का नवाब शेख सद्दू, मुल्तान का सधारी मुल्ला, मेवाड़ के राणा सांगा और रानी झाली, बीकानेर के राव लूणकरण व कंवर जैतसी आदि। (वील्होजी के एक कवित में गुरु जाम्भोजी के विभिन्न रााजाओं पर पड़े गहन प्रभाव की प्रामाणिक जानकारी मिलती है-

दिल्ली सिकंदर साह, दे परचो परचायौ।
महमद खान नागौरि, परचि गुरू आयौ।
दूदो मेड़तियो राव, आप गुर पाय विलग्गो।
रावल जैसलमेेर, परचंता सांसौ भग्गो।
सांतिल सनमुखि आय, सुचील तां हुवौ सिनानी।
सांग रांग सुण्य सीख, जका गुर कहीं से मानी।
छव राज्यंदर केू के अवर, आचारे ओलखियो।
वील्ह कहै मांगो पून्ह, जाहं मुगति ने हाथो दीयो।

इसके अतिरिक्त भी अनेक कवियों ने छंदो, साखियों, हरजसों एवं आख्यान काव्यों में विभिन्न राजाओं का वर्णन किया है जो गुरु जांभोजी से उपदेशित हुए थे। सबदवाणी के प्रसंगों में भी हमें एतद्विषयक यथार्थ जानकारी मिलती है। जोधपुर के राव मालदेव ने जांभोजी महाराज से लोहावट (फलोदी के पास) के जंगल में भेंट की। जाम्भोजी महाराज ने उन्हें सोने के बर्तनों में भोजन परोसकर पर्चा दिया था। नाथूसर के सैंसा के जोखाणी के दान देने के अभिमान को दूर करके जाम्भोजी ने निष्काम भाव से सेवा करने का आदेश दिया। इसी प्रकार ऊदो और अतली को शुद्ध भाव से अतिथि सेवा करने का उपदेश दिया। जांगलू के बरसिंह बणियाल भी जांभोजी के परम अनुयायी थे। इसके अतिरिक्त चारण शिरोमणि अल्लूजी चारण, कान्होजी चारण, रिणसीसर के रावल आदि भी जांभोजी महाराज के परम भक्तों में से थे। नाथ पंथियों में विशेष प्रसिद्ध लोहापांगल और लक्ष्मणनाथ, जो कि बड़े भारी सिद्ध थे जाम्भोजी महाराज के शिष्य बने। इस प्रकार अनेक लोग, जो राज वर्ग से,व्यापारी वर्ग से, ब्राह्मण वर्ग आदि से सम्बन्धित थे, गुरू महाराज से प्रभावित हुए और उनके बताये हुए रास्ते पर चलते, जिन सभी का नामोल्लेख स्थानाभाव के कारण सम्भव नहीं है। उपर्युक्त वृत से जांभोजी के व्यापक प्रभाव और मान्यता-महत्ता का पता चलता है। राजस्थान में जनसाधारण के साथ साथ जैसलमेर के भाटी बीकानेर, जोधपुर, छापर-द्रोणपुर, मेड़ता और फलोदी के राठौड़, चितौड़ के सिसोदिया, नागौर एवं अजमेर के सूबेदार आदि शासक वर्ग के लोग किसी न किसी रूप में उनसे सम्पर्क में आये और प्रभावित हुए। राजस्थान के बाहर भी उनके अनेक अनुयायी बने, यहां तक कि दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोदी को भी उन्होनें ज्ञानोपदेश द्वारा सुपथ पर चलने की प्रेरणा दी थी।
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