विक्रम सवत 1572 मिति बैशाख सुदी तीज के दिन भगवान विष्णु के साक्षात् अवतार एवं बिश्नोई धर्म के संस्थापक श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान भक्तिनी उमा बाई का मायरा भरने के लिए रोटू गांव में पहुचे थे।
उमा बाई के घर के आगे (गुवाड़ में) ठीक सामने ही भगवान रथ से उतरे तथा ज्यों ही भगवान ने जमीन पर पड़ी पत्थर की शिला पर चरण रखा तो वह पत्थर पिघल गया तथा पत्थर पर भगवान के चरण का चिन्ह उत्कीर्ण हो गया।
यह चरण चिन्ह भक्तों के दर्शनाथ्र आज भी निज मंदिर में मोंजूद है। इसे निज मंदिर में सुरक्षित रखते हुए एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है।
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान ने अपनी परम शिष्या उमा भादू के घर पहुच कर मायरा विक्रम सवत 1572 में बैशाख सुदी अक्षय तृतीय के दिन भरा था। उस समय गुरु महाराज के साथ 14 हजार भक्त एव राजा महाराजा जैसे जोधपुर के राव मालदे, चित्तौड़ के राणा सागा, मेवाड के राव दूदा,द्रोणपुर के राव बीदा, जैसलमेर के राव जेतसी व फलोंदी के राव हमीर भाटी तथा बीकानेर के राव लुण करण भाटी मोंजूद थे और 56 करोड़ का भात भरा था।